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________________ श्री जिनेन्द्र वर्णीजी ने अपनी साधना के लगभग दो दशक वाराणसी में बिताये। यहीं रहकर आपने जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, समणसुत्तं को अन्तिम रूप दिया। कृतज्ञ समाज ने आपका एक विग्रह (स्मारक) सारनाथ में बनाया, जहाँ देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को उनके सम्बन्ध में थोड़ी जानकारी मिलती है। ऐसे महामानव, जिसने अपने कृश शरीर से इतना बड़ा कार्य किया, जो अपने आचरण में सदैव ईमानदार रहे और जिन्होंने अपनी सल्लेखना-अवधि में अक्षरश: वही कर दिखाया जैसा कि आपने शांतिपथ प्रदर्शक में वर्णन किया है। ऐसे सम्प्रदायवाद से दूर रहने वाले, एकाकी, कर्मठ संत, दिखावे से दूर रहने वाले और जैन एकता (समणसुत्तं) की नींव रखने वाले की स्मृति जिज्ञासुओं के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रहती है। अभी हम सब उस महान् आत्मा के सम्बन्ध में शायद कम जानते हैं, जिसकी कथनी करनी में कोई फर्क नहीं रहा और उस एक व्यक्ति ने अपने छोटे से जीवन काल में वह कर दिखाया, जिसे सैकड़ों व्यक्ति मिलकर भी शायद अंजाम न दे सकें। - ऐसे एकाकी, सरल, शांति, क्षमाशील, कर्मठ व्यक्तित्व को हमारा शतश: नमन है। । अपने भीतर झाँको । । धर्मचन्द जैन, सूरत अपने भीतर झाँको करलो दूर बुराई सारी, जिससे फिर हँस उठे खुशी से भारतमाता प्यारी। यह शराब है जहर, इसे भूले से कभी न छूना, यह दहेज की प्रथा विवश कन्याओं की हत्यारी, पल में कर देती अबलाओं की माँगों को सूना। इससे नारी की मर्यादा मिली धूल में सारी। जब तक घर में वास करेगी यह मदिरा मतवाली, नारी पूजित जहाँ वहीं सारे देवों की बस्ती, आ पायेगी कभी न तेरे आँगन में खुशहाली। कहने वाले भारत में ही नारी कितनी सस्ती। क्यों करती अपनी माताओं, बहनों को दुखियारी। माँ का हो अपमान अगर तो इज्जत कहाँ तुम्हारी। अपने भीतर झाँको करलो दूर बुराई सारी॥ अपने भीतर झाँको करलो दूर बुराई सारी।। अपनी बुद्धि और श्रमबल से लाखों करो कमाई, रक्षक भक्षक बने और है यहाँ न्याय भी अंधा, लोभ पाप का बाप कभी तुम जुआ न खेलो भाई। नेताजी की शह पर होता दो नम्बर का धंधा। देख देश की दशा आँख में आँसू भर-भर आये, है चुनाव या छीना-झपटी, लोकतन्त्र यह कैसा, ले गाँधी का नाम, लाटरी खुद सरकार चलाये। पैसा है ईमान और भगवान हमारा पैसा । इसी जुए में बड़े बड़ों ने सारी दौलत हारी। अब करलो आमूलचूल परिवर्तन की तैयारी। अपने भीतर झाँको करलो दूर बुराई सारी। अपने भीतर झाँको करलो दूर बुराई सारी।। 0 अरिहंत टैक्सटाइल्स मार्केट, रिंग रोड, सूरत महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/26 • Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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