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________________ तीन देवियां उपास्य थी। हजरत मुहम्मद ने कुरान का विभक्त कर सकते हैं - (१) विज्ञानवाद, (२) निर्माण किया और इस्लाम धर्म का प्रतिपादन सन्देहवाद, (३) भौतिकवाद, (४) मार्क्सवाद । किया । जब इस्लामिक दुनिया अरब से बाहर निकलने जैन दर्शन - लगी, तब उन लोगों को यह अनुभव होने लगा कि __जैन दर्शन का प्रमुख उद्देश्य है - आत्मा उनके विचारों में और अन्य लोगों के विचारों में विषमता दुःख से मुक्त होकर अनन्त सुख की ओर बढ़े । जीव है। परिणामस्वरूप अरबी धर्म में अन्य नवीन सम्प्रदायों और पुद्गल इन दोनों का संबंध अनन्त काल से चला का जन्म हुआ-मोतजला सम्प्रदाय, करामी सम्प्रदाय आ रहा है। पुद्गलों के बाय संयोग से ही जीव विविध और अशअरी सम्प्रदाय । मोतजला सम्प्रदाय से पहले जितने भी अरबी विचार हैं, उनमें तर्क को कहीं भी प्रकार के कष्टों का अनुभव करता है । जीव और पुद्गल का जब तक संबंध विच्छेद नहीं होगा, तब तक अवकाश नहीं है । केवल श्रद्धा की ही प्रमुखता है । आध्यात्मिक सुख सम्भव नहीं है । जीव और पुद्गल इसलिए इन्हें दर्शन की अपेक्षा धर्म कहना अधिक दोनों पृथक कैसे हो सकते हैं ? इसके लिए सम्यक्दर्शन, तर्कसंगत है । विश्वासवादी अरबी धर्म में मोतजला सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का मार्ग प्रस्तुत किया सम्प्रदाय ने तर्क प्रविष्ट किया । है। अहिंसा और अनेकांत जैनदर्शन के मुख्य सिद्धान्त सूफी (यूनान का सोफी) सम्प्रदाय का प्रारंभ हैं। विचार में अनेकांत और व्यवहार में अहिंसा आने ७५० ईस्वी के आस-पास माना जाता है । इस्लामिक से जीवन सुखी और शांत होता है। आत्मवाद, कर्मवाद, सूफीवाद नवीन अफलातूनी रहस्यवादीदर्शन तथा नयवाद, निक्षेपवाद, प्रमाणवाद, सप्तभंगी, अनेकांतवाद भारतीय योग-दर्शन का सम्मिश्रण है । सूफी दर्शन के आदि जैनदर्शन के आधारभूत सिद्धान्त हैं। अनुसार इन्सान खुदा का ही एक अंश है । खुदा में ही जैन दर्शन में जीव और पुद्गल दोनों पर गहन लीन होना इन्सान के जीवन का लक्ष्य है। ये विचार चिंतन हुआ है। जीवन और जगत के रहस्यों को गहराई आचार्य शंकर के अद्वैतवाद से मिलते-जुलते हैं । से समझा गया है और दोनों के परस्पर संबंधों को वस्तुतः सूफी सम्प्रदाय धार्मिक की अपेक्षा दार्शनिक उजागर किया गया है। जितना सूक्ष्म अध्ययन जीवन अधिक है। तत्वों का हुआ है उतना ही सूक्ष्म अध्ययन भौतिक भारतीय और यूनानी दर्शन के समान यूरोपीय तत्वों का भी हआ है। लोक की संरचना के बारे में दर्शन में तत्व की मीमांसा उतनी नहीं है जितनी प्रमाण- जो चिंतन जैन दर्शन में हुआ है वह मौलिक है। अपने मीमांसा है । एतदर्थ उसे दर्शन की अपेक्षा विज्ञान और विशिष्ट स्वभाव के होते हए भी अनेकांत सिद्धान्त के तर्कशास्त्र कहना अधिक उपयुक्त है । कुछ चिन्तकों द्वारा जैन दर्शन अन्य दर्शनों के प्रति समन्वयवादी ने तत्व पर भी लिखा है पर तर्क और विज्ञान की अपेक्षा दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। अपनी इन विशिष्टताओं के अल्पमात्रा में लिखा गया है । अरबी दर्शन के समान कारण जैन दर्शन विश्व के अन्य सभी दर्शनो से श्रेष्ठ इसाई दर्शन भी पहले एक सम्प्रदाय विशेष था, दर्शन सिद्ध होता है। जैन दर्शन की विशेषताओं का संक्षिप्त नहीं। यहूदी और ईसाई परस्पर अपनी श्रेष्ठता व ज्येष्ठता परिचय नीचे दिया जा रहा है। प्रमाणित करने के लिए संघर्ष करते रहे । चर्च धर्मस्थान १. अध्यात्मवाद - की जगह संघर्ष के केन्द्र हो गये थे। इस दयनीय अवस्था को देखकर कुछ विचारकों ने धर्म की छाया . जन जैन दर्शन में आत्मा की स्पष्ट अवधारणा में पलते हए अंधविश्वासों का घोर विरोध किया। श्रद्धा है। आत्मा को एक अजर, अमर, अनंत शक्ति संपन्न, के स्थान पर तर्क को महत्व दिया। यहीं से यरोपीय अनंत ज्ञान-दर्शन युक्त चेतन सत्ता माना गया है । दर्शन प्रारम्भ होता है । यूरोपीय दर्शन को चार युगों में पुद्गल के संयोग से जीवात्मा लोक में विभिन्न पर्याय महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-2/67 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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