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________________ वर्गणा, तैजस वर्गणा, कार्माण वर्गणा, भाषा वर्गणा वर्गणा में विद्युतमय शक्ति चुम्बकीय शक्ति ऊर्जा प्रकाश और मनोवर्गणा को ही अपना विषय बना सकते हैं, शीतलता होती है। वे निरन्तर परिवर्तनशील हैं। क्योंकि ये वर्गणा अनन्त परमाणु के बंध और विभाजन क्रियावति शक्ति से सहित हैं। वह निगेटिव रूप और में बनती हैं। परमाणु में अनन्त गुण हैं - स्पर्श, रस, पोजेटिव रूप होते हैं। दीपायन मुनि को क्रोध आया वर्ण, गंध, ऊर्जा, विद्युत, रूक्षपना, स्निग्ध आदि। था, तब उनके बायें कन्धे से १०० गुणा १०० मील रूक्ष परमाणु का रूक्ष परमाणु के साथ बंध का लम्बा चौड़ा तेजस शरीर का पुतला ऊर्जा रूप होता है। जिसको वैज्ञानिक इलेक्टान कहते हैं। स्निग्ध प्रकाश रूप निकला था। उसने समस्त द्वारिका को भस्म परमाणु का बंध स्निग्ध परमाणु के साथ होता है, कर दिया था। अर्थात् तेजस शरीर में अनन्त ऊर्जा जिसको वैज्ञानिक प्रोटोन कहते हैं और स्निग्ध परमाणु प्रकाश होता है। का रूक्ष परमाणु के साथ जो बंध होता है, उसको चारण ऋद्धि धारी मुनि जब मथुरा आये थे वहाँ वैज्ञानिक न्यूट्रोन कहते हैं। इस तरह का जिनागम में महामारी दुर्भिक्ष देखकर इतनी करूणा आई कि उनके बहुत विस्तृत वर्णन उपलब्ध है। इससे सिद्ध है कि दाहिने कन्धे से १०० गुणा १०० मील लम्बा-चौड़ा भगवान महावीर सर्वज्ञ थे। परमाणु में क्रियावती शक्ति शुक्ल रूप शीतल तेजस शरीर निकला था जिससे है निरन्तर पूर्व अवस्था का त्याग और नवीन अवस्था समस्त दुर्भिक्ष समाप्त कर, महामारी समाप्त कर पेड़ों में की प्राप्ति और परमाणु वह का वही रहता है, जो ध्रौव्य फल फूल पैदा कर, अमृत की वर्षा करके वापिस है। यह संसार अनन्त सूक्ष्म निगोदिया जीव से बिना मुनियों के शरीर में आ गया था। अत: तेजस वर्गणायें किसी आधार के तथा बादर निगोदिया जीवों से शीतल रूप भी होती हैं। अत: आधुनिक विज्ञान केवल वनस्पति, मनुष्य, पशुओं, शरीरों के आधार से भरा तेजस, कार्मण, भाषा वर्गणा, आहारक आदि वर्गणाओं हुआ है। वे एक श्वास में १८ बार जन्म-मरण करते तक ही सीमित हैं। उनको विश्व रूप मानते हैं। वे जीव, हैं। वे मारणान्तिक समुद्घात निरन्तर करते हैं, उससे धर्म, अधर्म, आकाश, काल की सत्ता स्वीकार नहीं उनका तैजस-कार्माण शरीर की वर्गणा उनके शरीर को करते हैं, क्योंकि वे अमूर्तिक होने से उनके विषय के छोड़कर जहाँ वे उत्पन्न होते हैं, वहाँ जाकर वापिस बाहर हैं। उनके शरीर में प्रवेश करती है, फिर वे मरते हैं। इस संसारी जीवों के तीन शरीर (१) औदारिक तरह यह विश्व तैजस और कार्मण वर्गणा से ठसाठस शरीर (२) तेजस शरीर (३) कार्मण शरीर अनादि से भरा हुआ है। आधुनिक वैज्ञानिक उनकी वर्गणाओं को है और जब तक सिद्ध अवस्था प्राप्त नहीं करेंगे, तब पकड़कर उनको ही विश्व का एक मात्र घटक मानते तक तीनों रहेंगे। जीव जब राग-द्वेष-मोह भाव करता हैं, अन्य किसी की भी सत्ता नहीं मानते हैं। है तो आत्मा के प्रदेशों में कम्पन होता है, चुम्बकीय “वैज्ञानिक के अनुसार विश्व अपृथक्भूत, क्षेत्र बनता है और कार्माणवर्गणायें कर्म रूप होकर ऊर्जा, पेटों का गतिशील जाल है, इसके घटक विद्युत आत्मा में चिपकती हैं। यह बंध चार प्रकार का है - चुम्बकीय, विकिरण, बल क्षेत्र स्वतंत्र पृथक व्यक्तिनिष्ठ (१) प्रकृति बंध :- ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अधिक है। इसके कार्यकारी बल कणों के गतिशील वेदनीय, अन्तराय, मोहनीय, नाम, गोत्र आयु रूप पेटर्न हैं और विनियमित होते रहते हैं। इससे बल एवं प्रकृति बंध हैं। (२) प्रदेश बंध :- एक समयप्रबद्ध कर्म पदार्थ कण एकीकृत रूप में पाये जाते हैं”। यह सब परमाणु जिसमें अनन्त परमाणु होते हैं, वे कार्माण शरीर तथ्य केवल तेजस वर्णणा में ही उपलब्ध है। तेजस से बंध जाते हैं। (३) स्थिति बंध :- उन कर्म परमाणु महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-2/42 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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