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________________ है। परीक्षा करने पर अगर वह खरी उतरती है तो भगवान कर पाये हैं। इससे सिद्ध है कि भगवान महावीर सर्वज्ञ महावीर में श्रद्धा उत्पन्न हो जावेगी और इस तरह सच्चे थे, उनका कहा हुआ शास्त्र सत्य है, कसौटी पर खरा देव-शास्त्र-गुरु पर श्रद्धा हो जावेगी और अपनी शुद्ध उतरता है। आत्मा पर श्रद्धा उत्पन्न हो जावेगी, वही श्रद्धा-ज्ञान से (५)६ महीने ८ समय में ६०८ जीव मोक्ष जाते यह जीव मिथ्यात्व कर्म का विध्वंस करना प्रारंभ कर हैं और ६०८ जीव ही नित्य निगोद से निकलते हैं। देता है और आत्म-तत्त्व को जान लेता है। अतीत काल अनादि है, इसलिए वह काल अनन्त है। आचार्य समन्तभद्र ने स्वयंभू-स्तोत्र में कहा है इसप्रकार अनन्त जीव मोक्ष को प्राप्त कर सिद्ध कि हे भगवान ! आपने वस्तु को उत्पाद-व्यय- शिला पर विराजमान हैं। वे कभी भी अब संसार में नहीं ध्रौव्यात्मक देखा है। इससे सिद्ध है कि आप सर्वज्ञ हैं। आयेंगे। आने वाला भविष्य काल अतीत काल से भी विश्व में नई वस्तु उत्पन्न नहीं हो सकती है और न किसी अनन्त गना है। जीव केवल अनन्त ही हैं। तो क्या यह वस्तु का नाश हो सकता है और सब वस्तुएँ निरन्तर संसार जीव रहित हो जायेगा ? कभी नहीं होगा। अपनी अवस्था को बदल रही है, पुरानी अवस्था का जिनागम में कहा है कि इस संसार में असंख्यात त्याग नवीन अवस्था की उत्पत्ति और वस्तु वही-वही लोकप्रमाण निगोद शरीर हैं और एक निगोद शरीर में की रहती है, वह ध्रौव्य है। अनन्त निगोद जीव हैं, एक निगोद शरीर के जीव भी (१) मनुष्य पर्याय का व्यय और पशु पर्याय की अनन्त होने से वे भी समाप्त नहीं होंगे और आगामी उत्पत्ति और जीव द्रव्य वही-वही है। भविष्य काल में भी अनन्त जीव मोक्ष जाने पर भी (२) मेरी बचपन की पर्याय का व्यय और यवा समाप्त नहीं होंगे; क्योंकि जिनागम का सिद्धान्त है वद्ध पर्याय का उत्पाद और मैं वही-वही हूँ. जो उस अनन्त में से अनन्त घटाओ तो भी अनन्त बचेगा। यह पाठशाला में पढता था। मेरा जीव ध्रौव्य है। सिद्धान्त आज भी वैज्ञानिक स्वीकार करते हैं। इससे (३) मोमबत्ती को जलाने पर उसकी लौ बाहर सिद्ध है कि भगवान महावीर सर्वज्ञ थे। नहीं निकले तो मोम का व्यय गैस की उत्पत्ति और जिनवाणी सर्वज्ञ भगवान की कही हुई है, जो उसका वजन वही-वही रहता है, वह ध्रौव्य है। आज भी उपलब्ध है, उसके अनुसार विश्व के छह घटक हैं। जीव, परमाणु, धर्म, अधर्म, आकाश और इस सारे विश्व में छह द्रव्य निरन्तर उत्पाद काल। जीव, धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्य व्यय कर रहे हैं और सभी द्रव्य वही के वही ही हैं, अनादि अनन्त हैं। यह सिद्धान्त सर्वज्ञ ही देख सकते अमूर्तिक हैं व उनमें स्पर्शन, रस, गंध और वर्ण आदि नहीं होने से वे आधुनिक वैज्ञानिक के विषय के बाहर हैं अन्य नहीं। हैं। परमाणु भी एक प्रदेशी है वह भी जिनागम के (४) जैनागम में समय की व्याख्या की है। एक अनुसार इतना सूक्ष्म है कि उसको भी वैज्ञानिक नहीं परमाणु को पास वाले परमाणु को मंदगति से पार करने देख सकते हैं। परमाण व देख सकते हैं। परमाणु का जिनागम में विस्तार से वर्णन में जितना समय लगेगा, वह एक समय है। भगवान । मिलता है। अनन्त परमाणु के समूह को वर्गणा कहते महावीर ने दोनों परमाणुओं को देखकर गति का निर्धारण हैं। २३ वर्गणा रूप कथन धवला पुस्तक १४ में विस्तृत किया था। रूप से वर्णन किया गया है। उनमें एक, दो, तीन, एक समय सेकण्ड/१०५०° है, जबकि वैज्ञानिक संख्यात, असंख्यात, अनन्त परमाणु के समूह भी अब तक केवल सेकण्ड/१०° तक ही समय का ज्ञान वैज्ञानिकों के पहुँच के बाहर हैं। वे भी केवल आहार महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-2/41 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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