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________________ विशेषों के बिना क्या सामान्य की महिमा उल्लसित होती है अर्थात् नहीं। इस लोक में सामान्य से रहित ये विशेष क्या अपने आपको धारण करते हैं ? अर्थात् नहीं। निश्चय से जिनके एक द्रव्य की विस्तृत अनन्त पर्यायों का समूह बीत चुका है अर्थात् जो नाना पर्यायों के द्वारा विशेष रूप हैं और जो दर्शन-ज्ञान के चमत्कार से सरस हैं अर्थात् दर्शन और ज्ञान की अपेक्षा सामान्य रूप हैं - ऐसे आप वस्तुपने को प्राप्त होते हैं। यहाँ नैयायिक वैशेषिकों के एकान्तमत का खण्डन हो गया और पदार्थ की सामान्य-विशेषात्मकता सिद्ध की गई है। केवलज्ञान के माहात्म्य का अलौकिक वर्णन हृदय ग्राह्य बनाना आचार्य अमृतचन्द्र की रचना का वैशिष्ट्य है।३ निश्चय-व्यवहार का आश्रय लेकर स्तुतियाँ की हैं। आचार्य स्वयं दसवीं स्तुति करते हुए कहते हैं कि मैं विशुद्ध विज्ञानघन आपकी एकमात्र शुद्धनय की दृष्टि से स्तुति करूँगा। इसका तात्पर्य यह है कि इससे पूर्व व्यवहार दृष्टि रही, क्योंकि बाह्य क्रियाकलापों को लेकर स्तुतियाँ की गई हैं, व्यवहार धर्म के रूप में क्रियायें आवश्यक होती हैं। __इसप्रकार सम्यक् परिशीलन करने पर कहा जा सकता है कि इस स्तुतिकाव्य में सभी सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया गया है। इसका यह विवेचन समयसार आदि ग्रन्थों के प्रसिद्ध टीकाकार आचार्य अमृतचन्द्रसूरि द्वारा ही किया जाना संभव है, क्योंकि अमृत कलश से भाषा-भाव आदि सभी विषयों में साम्य है। निःसन्देह यह रचना स्तुतिकाव्य जगत् में अनुपम एवं महत्त्वपूर्ण है। १. m »i फुटनोट - इत्यमृतचन्द्रसूरीणां कृतिः शक्तिम (भ) णितकोशो नाम लघुतत्त्वस्फोटः समाप्तः । लघुतत्त्वस्फोट ३. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, स.सा. पंचास्तिकाय, प्रवचनसार लघुतत्त्वस्फोट २/२ एवं क्रमाक्रमविवर्तिविवर्त्त गुप्त, चिन्मात्रमेव तव तत्त्वमतर्कयन्तः। एतज्जगत्युभयतोऽतिरसप्रसारा निस्सारमद्य हृदयं जिनदीर्यतीव ।।९/२ भावो भवन भासि हि भाव एव चिताभवाश्चिन्मय एव भासि । भावो न वा भासि चिदेव भासि न वा विभो भास्यसि चिच्चिदेकः ।।२४/१०॥ लघुतत्त्वस्फोट प्रत्यक्षमुत्तिष्ठति निष्ठरेयं स्याद्वादमुद्रा हठकारतस्ते। अनेकशः शब्दपथोपनीतं संस्कृत्य विश्वंससमस्खलन्ती॥१८/८।। लघुतत्त्वस्फोट ८. लघुतत्त्वस्फोट १/१७ ९. समयसार कलश-२, पंचास्तिकाय, पुरुषार्थसिद्धयुपाय १०. घटमौलिसुवर्णार्थी नाशोत्पत्ति स्थितिष्वयम्। शोकः प्रमोद माध्यस्थं जनो याति स हेतुकम्॥ आप्त मीमांसा ११. लघुतत्त्वस्फोट १३ से १५/१९ १२. वही, १२ से १५/२० १३. वही २०वी स्तुति १४. वही २४वी एवं २५वीं स्तुति महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-2/34 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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