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________________ महावीर - नमन श्रीमती कोकिला जैन परम वीर देवाधिदेव- त्रिभुवन पति सम्यक् ज्योतित हो, जगत्साक्षी शिवमार्ग प्रशासक केवल ज्योति प्रभाकर हो । मोह महातम नाश हेतु तुम शान्ति विमल सुधाकर हो, विश्ववंद्य और पतित पावन प्रभु दीन बन्धु दुख भंजक हो । प्राणी मात्र पर दया और करुणा की पावन सलिला हो, क्षमा प्रेम सौहार्द्रपूर्ण वात्सल्य की पावन मूर्ति हो । नष्ट किये चउ घाति कर्म हित मित प्रिय उपदेशक हो, दिव्यध्वनि देकर कल्याण भविजन के मार्ग दर्शक हो । दस-अष्ट महाभाषामयी वाणी सर्वांग खिरी लघुभाषक हो, ध्वनि ओंकार से गूथी गणधर जिनवाणी नायक तुम हो । समवशरण की सभा बैठे भविजन सत्भव दिग्दर्शक हो, चार अनन्त चतुष्टय धारी अष्ट प्रातिहार्यों से युत हो । रत्नत्रय की सीढी चढ़ शिव मराग प्रशस्त कराते हो, Jain Education International सुगुण छियालीस गुण अनंत अर्हत पद के भासी हो । अष्ट कर्म अरि नष्ट किये सिद्धालय मे जो तिष्ठे हो, निर्विकार अविकार निरंजन सिद्ध चक्र के स्वामी हो । जन्म-जयन्ती आज मनायें त्रिशला सिद्धार्थ के नन्दन हो, वैशाली कुण्डग्राम की मेदिनी के विकसित पावन जलज ही हो । जीओ और जीने दो सबको नारा शान्तिमय देते हो, वीतराग निर्ग्रथ रूप यह निजानन्द रमण के दर्शक हो । ऐसी शक्ति वरदे प्रभुवर, आचरण आपसा हम पावें, सम्यक् की प्राप्ति हो सबको, “कोकिल” शत-शत नमन करे ।। महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1 /40 For Private & Personal Use Only २झ ५ शास्त्री नगर जयपुर www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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