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________________ कहा जा सकेगा कि व्यक्तित्व के निर्माण में वंशानु- उनके मानसिक संगठन में व्यक्तित्व का विकास क्रम के परिवेश की अपेक्षा वातावरण की सामयिक दर्शनीय था। रैक्स रॉक की दृष्टि से समाज द्वारा चेतना का ही अधिक योग-दान रहा। महावीर का सद्गुणों का समावेश महावीर के व्यतित्व में हुआ। जन्म हुआ राजसी सम्भ्रान्त परिवार में, किसी भी प्रकार की कमी नहीं, रही सही कमी देवताओं के डेशियल की दृष्टि से महावीर के व्यक्तित्व में वस्त्र-आभूषण-भोजन ने पूरी की। यों महावीर अति व्यवहारों का वह समायोजित संकलन है जो उनके सुख से पीड़ित थे फलतः वे धर्म के नाम पर यज्ञ अविचलित अनुयायियों को ग्राज भी परिलक्षित हो की हिंसा को रोकने बढ़े; समाज में तिरस्कृत रहा है । जन्मजात वृत्तियों और बाह्य पाचरणों होती नारी को सम्मान दिलाने चले, भोगमूलक का महावीर में एक अभूतपूर्व ताल मेल है। प्रवृत्ति के स्थान पर योगमयी निवृत्ति की प्रतिष्ठा के लिये अग्रसर हुए। विलासी देश और समाज को तप त्याग और परोपकार की दृष्टि लिये विरागी बनाने के लिये महावीर ने क्या नहीं महावीर ब्राह्मण हैं । सत्साहस और सुधैर्य तथा किया ? ईश्वरबादी समाज को स्वयं ईश्वर बनाने । र सुवीरता की मूत्ति होने से क्षत्रिय हैं। प्रात्मनिधि के लिये महावीर ने एक अपूर्व चेतना या देशना दी। से सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र के कोष होने से दार्शनिक द्वन्द्वों में उलझते हुये बौद्धिक वर्ग को वैश्य हैं । सेवक को भी सख्य बना देने की क्षमता उन्होंने अनेकान्त की वह दीप-शिखा दी कि जिसके लिये, संसार के उद्धार हेतु बीड़ा लिये महावीर विमल प्रकाश में शत्रु मित्र बन सके व विरोध अभूतपूर्व शूद्र भी हैं। हिप्नोकेटस के शब्दों में स्वयं निरोध हुआ। महावीर जो जीवन-काल में महावीर रक्तवर्ण (कनत्स्वर्णभासो-Sanguine) तीर्थकर वने उसकी पृष्ठ-भूमि में उनके पिछले व सदा प्रसन्न व्यक्ति हैं। वार्नर की दृष्टि से उन्हें वर्तमान जीवन के संस्कार और स्वभाव मुखरित 'चतुर' की श्रेणी में रखा जा सकता है । क्रोचमर वृद्धिंगत हुए, यह तो निस्संकोच स्वीकारना के विचार से वे ऐसथेनिक (A thenic) सिद्धान्त होगा। प्रिय व्यक्ति हैं, सिद्धान्त को जीवन में उतारने के पक्षपाती हैं। थार्नद्राइक के मत से महाबीर के व्यक्तित्व की विविधा सूक्ष्म विचारक और स्थूल विचारक (क्रियाशीलता) मनोविश्लेषणात्मक दृष्टि लिये फ्रायड के पर बल देने वाला कहा जा सकेगा। टरमैन की मतानुसार इदम् (Id) अहं (Ego) से पर नैतिक दृष्टि से महावीर प्रतिभाशाली व्यक्तित्व लिये हैं मन (Super Ego) भी महावीर को कहा जा तो जेम्स की दृष्टि से महावीर का व्यक्तित्व नर्म सकेगा। कारण, महावीर ने नैतिकता लिये इदं प्रकृतिवाला है। केटल की दृष्टि से वेग हीन (शरमीले अन्तर्मुखी) हैं और युग की दृष्टि से भी और अहं की अपने जीवन-काल में काफी पालो महावीर अन्तर्मुखी व्यक्तित्व लिये हैं तब ही तो चना की थी। तीर्थकर की प्रशंसा में चित्रंकिमत्र यदि तेत्रिदशॉग नाभिः जैसी पंक्तियां पठनार्थ मिलती है। युग की दृष्टि से महावीर सामूहिक अज्ञात मन लिये थे। उन्होंने पूर्वजों की विशेषताओं को, स्टीफेन्सन के विचार से महावीर प्रसारक जातीय गुण भाव-प्रतिमाओं को अत्यन्त प्रांजल अन्तशुखी हैं और स्प्रंगर की दृष्टि से महावीर परिष्कृत स्वरूप दिया था। वारेन की दृष्टि से ज्ञानात्मक व्यक्तित्व लिये थे । बुहलर के वर्गीकरण 1-12 महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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