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________________ मान रहती है । कारण, सत्व हलका और प्रकाशक ग समधातु-शरीर में रस रक्त प्रादि धातुएं है, इसलिये सत्व पदार्थ हलके होते हैं । सत्व से न कम हों न अधिक । यूक्त व्यक्ति-सुख और दुख दोनों अवस्थाओं में सम घ. सममल-मल-मत्र पसीना आदि न कम रहते हैं। पाना न अधिक। भगवान महावीर परमवीतरागी थे । क्षमा और ङ. समक्रिया-शारीरिक और मानसिक मृदुता की मूर्ति थे । प्रार्जव और शौच के स्रोत थे। क्रियाओं में समता । सत्य और संयम के केन्द्र थे। तप और त्याग के च. प्रसन्नात्मेन्द्रिय मना:-प्रात्मा और इन्द्रिय प्रतीक थे । आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य के ज्वलन्त तथा मन की प्रसन्नता, बाहर-भीतर खुशहाली की आदर्श थे। उन्होंने अनुगामियों को सामायिक या उजियाली । समभाव की साधना करने का सुखद सन्देश दिया था । सर्वदा समता के सदन में सुख से निवास करने भगवान महावीर का शरीर परम प्रौदा रिक की सलाह दी थी। वे चंचलता और उत्तेजना से ___ था, अतएव वातपित्त कफ जनित विकारों से परे रहित थे, अत एव अपने जीवन में प्रागत अनेक था । श्राहार की बात तो फिर भी उनके लिये थी उपसर्गों और परीषहों (स्व-परकृत उपद्रवों) को पर निहार की बिल्कुल नहीं। उाका उत्कृष्ट जीतने में समर्थ हुये। वे आलस्य से परे थे, अत ___ शारीरिक संहनन और संस्थान विश्व में एक ही एव 'संयमः खलु जीवनम्' की शिक्षा अपने जीवन था, इसलिये वे मल-मूत्र-पसीना जैसी सर्वसाधारण बाधाओं से परे थे। उनके जीवन की शारीरिक में सिद्धान्त और व्यवहार से दे सके थे। और मानसिक क्रियाओं में जो समता या एकहां तो कपिल मुनि के सांख्य शास्त्र की दृष्टि रूपता थी, उसी के कारण राजकुमार महावीर से महावीर के व्यक्तित्व का मापन एक शब्द में क्रान्तिकारी शान्ति प्रिय महावीर बने । चूकि शरीर 'सतोगुणी' होगा। और शरीर जनित भोग-उपभोगों के प्रति उनके मन में तीव्र विरक्ति थी, इन्द्रिय रूपी अश्वों को उन्होंने आयुर्वेद के पूर्ण पुरुष वश में कर लिया था. इसलिए वे अपने मन और आयुर्वेद के प्राचायों से आदर्श व्यक्तित्व के आत्मा की दृष्टि से पूर्णतया प्रसन्नता-निराकुलताविषय में परामर्श लें तो वे अपने अध्ययन और निश्चितता लिए थे। अनुभव के आधार पर कहेंगे कि सम दोष समग्निश्च समधातु मलक्रियः । हां तो आयुर्वेद की दृष्टि से महावीर व्यक्तित्व प्रसन्नात्मेन्द्रिय मना: मापन पूर्ण पुरुष या अलौकिक पुरुष के अनुरूप होगा। प्रस्तुत सूत्रस्वरूप पंक्ति का सुविशद पर . संक्षिप्त स्पष्टीकरणयों किया जा सकेगा कि परसोना से परे दिगम्बर ____ व्यक्तित्व (Personality) पर्शनेलिटी शब्द क. समदोष-शरीर में वात (स्नायु संस्थान) की व्यत्पत्ति यनान की भाषा (ग्रीक) के परसोना पित्त (रक्त संस्थान) और कफ (मलसंस्थान) की Persona) शब्द से मानी जाती है । परसोना उस समान अवस्था हो । बाहरी वेशभुषा को कहते थे, जिसे प्राचीन यूनान ख. समग्नि-पाचक अग्नि की समानता । के लोग नाटक खेलते समय पहनते थे। इस दृष्टि 1-10 __ महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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