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________________ ( पृष्ठ 10 का शेष ) निर्माण कर रहे हैं, जो श्रमण को कलंकित किये बिना न रहेगा । इस प्रकार समग्र रूप से श्रात्म त्रिराधक वर्ग ने महावीर एवं उनके आदर्शों को प्रपनी लोकेषणा की कुटिल चालों में कैद कर दिया है । मौर वह भी महावीर की श्रमण संस्कृति की रक्षा के नाम पर | बाढ़ ही खेत को खाने लगी है । प्रश्न यह है कि जगत के कल्याण का आदर्श प्रस्तुत करने वाले महावीर क्या इतने निर्बल हैं कि वे इस कृत्रिम कैद के बंधन नहीं काट सकते ? कर्म जंजाल की अनंत बेड़ियां काटने वाले महावीर क्या कुछ व्यक्तियों, संस्थानों एवं बाह्याचार में निमग्न साधुत्रों की बेडियां नहीं काट सकते ? यह प्रश्न महावीर के सच्चे अनुयायी का ही नहीं किन्तु इतिहास के माध्यम से मानव जाति को कुरेद रहा है और इस कारण महावीर के दर्शन पर अनेक प्रश्न चिन्ह उभर गये हैं । ( पृष्ठ व्यक्ति जैसे करता वैसा ही पाता है । अच्छे व बुरे कर्म कोई बंधे हुये नहीं होते उनका निर्माता तो वह स्वयं होता है । (7) ऊंच-नीच - भगवान महावीर ने बताया कि सब प्राणियों की आत्मायें समान हैं वर्ण, लिंग, धर्म, समाज कर्म आदि किसी भी तरह से व्यक्ति समान हैं, क्योंकि उनकी आत्मायें समान है इसलिये भेद-भाव न करना चाहिये । उन्होंने तो यहा तक कहा कि चीटी से लेकर हाथी तक श्रात्मा की दृष्टि से समान है । महात्मा गाँधी ने भगवान महावीर के सिद्धान्तों के आधार पर छुआछूत को बंद किया । भगवान महावीर की देन अन्य महापुरुषों से अलग रही । उन्होंने विश्व को श्राध्यात्मिक प्राक्ति का अनुपम पाठ पढाया । उनके उपदेश Jain Education International क्या अनेक प्रश्न चिन्ह के घेरे में एवं बेड़ियों में कैद महावीर को पुनः प्रस्थापित करने उन्हें अवतार लेकर क्रांति करनी होगी, जिसमें जैन दर्शन विश्वास नहीं करता ? यदि ऐसा संभव है तो श्रम के चौराहे एवं ग्रात्म विराधक कषाय पोषक समुदाय से महावीर के शासन की रक्षा एवं विस्तार कैसे हो ? प्रश्न गंभीर एवं निर्णायक है । महावीर के ग्रात्म समर्पित अध्यात्मवादी वर्ग को संपूर्ण सच्चाई सहित प्रयास करना होगा । और स्वयं के भूमिकानुरूप मनोवेगों की भी तिलांजली देकर एक नया आदर्श प्रस्तुत करना होगा जिससे सामान्य नैतिकता एवं सदाचार बाह्याचार में रत समाज नैतिकता युक्त सदाचार एवं भावनयुक्त बाह्याचार के सूक्ष्म अन्तर को स्थूल क्षेत्रों से देख सके और महावीर की कृत्रिम बेड़ियां काट सके । 12 का शेष ) तार्किक व विज्ञान दोनों ही दृष्टि से खरे उतरते हैं । उन्होंने प्रत्येक विषय को अत्याधिक गहराई से सोचा । जो चमत्कार वैज्ञानिक आज कर रहे उन्होंने उसे 2500 वर्ष पूर्व ही कर दिये थे । उन्होंने अन्धविश्वास, रुढिवादियों, हवनों, भेद-भाव आदि का विरोध किया। यदि ग्राज समाज उनके पद चिन्हों पर चले तो उनके प्रत्येक सिद्धान्त से श्रहिंसा से मानसिक सुख व शांति स्याद्वबाद से-वैज्ञानिक दृष्टि को अनेकान्त समन्वयपरकता अपरिग्रह से समाजवाद प्राप्त कर सकता है । उपयुक्त विवेचनाओं के पश्चात यह निर्विरोध सत्य हैं कि आज भौतिकवाद व आणविक युग में उनके सिद्धान्तों को पालन करे तो हम वर्तमान चिंतानों से मुक्त हो कर मानसिक व सुख शांति प्राप्त कर सकेंगे और समाज व देश का कल्याण कर सकेंगे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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