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________________ सबसे पहले हमें दुराग्रह छोड़ना चाहिए प्रातःकाल अर्चना - वन्दना करने वाले जैनों को यह मानना चाहिए कि भगवान् महावीर के समस्त भक्त एक हैं और उनकी मान्यता सर्वत्र समान हैं । भेद-भाव करने वाले वे धर्म नेता हैं। जो धार्मिक व्यापकता से अनभिज्ञ हैं । क्षणभंगुरप्रतिष्ठा के मोह को छोड़कर इन धर्म-प्रधानों को जनता के हित की निरन्तर चिन्ता करनी चाहिए । जीव मात्र के हितैषी भगवान् महावीर का दिया हुआ प्रनेकान्त-वाद सचमुच हमें बरदान के रूप में मिला है । सैद्धान्तिक रूप से जिस ने इसके महत्व को समझ लिया है वह कभी भी जैनों के विभिन्न सम्प्रदायों को सत्य मान ही नहीं सकता । हमें आज इस सत्य को अपनाने की विशेष रूप से आवश्यकता है कि मनुष्य मात्र श्रहिंसक 3-15 Jain Education International है, वह सर्वप्रथम इंसान है और इसके उपरान्त वह और कुछ हो सकता है । सब जैन भगवान् महावीर के उपासक हैं, प्रो० श्री वन्द्र जैन उनके सिद्धान्तों के मानने वाले हैं एवं उनकी निष्पक्ष मान्यताओं के अविचल विश्वासी हैं । मतभेद का केवल एक कारण है, और वह दुराग्रह के प्रति मूढ़ व्यामोह | यह हमारे लिए विपत्ति का संकेत है विनाश का शंखनाद है, मानवता के विध्वंस का केतु है । सब प्रकार के दुराग्रहों को भुलाकर यदि हम सब एक न हुए तो यह निश्चित है कि हमारी परिस्थिति गिरते हो जावेगी, उस समय हमें अपने अस्तित्व का गिरते एक दिन विनाश के महासागर में विलीन भी बोध न रह सकेगा । अभी भी समय है कि हम प्रांख खोले अपने दिल को टटोलें और आत्म विश्वासी बनकर इंसानियत को अपनावे | For Private & Personal Use Only महावीर जयन्ती स्मारिका 78 www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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