SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : राजस्थान जैन सभा द्वारा सन् 1977 में श्रायोजित उच्च माध्यमिक विद्यालय कक्षा तक के विद्यार्थियों की निबंध प्रतियोगिता में प्रथम व द्वितीय स्थान प्राप्त निबंधों को यहां प्रकाशित किया जा रहा है । पाठक इन्हें पढते समय यह ध्यान में रखें कि इनको यथावत मुद्रित किया गया है । प्रधान संपादक विश्व का प्रत्येक प्राणी शान्ति प्रर सुख चाहता हैं, इसके लिए वह मनन चिंतन भी करता हैं । विश्व में समय - 2 पर अनेक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपने मनन चितन द्वारा अपनी 2 विचार धाराएँ विश्व के सम्मुख रखी हैं, जिन्हें व्यक्तियों ने अपनी 2 विचार धाराओं पर मानी हैं । हमारे देश भारतवर्ष में भी समय-2 पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लेकर अलग-2 विचार धाराएं रखी हैं । भगवान महावीर ने आज से 2575 वर्ष पूर्व इस वसुन्धरा पर जन्म लेकर अपने मनन, चिंतन एवं तपोबल द्वारा 'केवल्य ज्ञान' की प्राप्ति की, और प्राणियों को जिनका उद्देश्य 'शान्ति एवं सुख प्राप्त करना' को अपनी विचारधारा दिव्य ध्वनि द्वारा दी । भगवान महावीर ने विश्व को आध्यात्मिक शक्ति का वह अमोघ मंत्र सिखलाया जिसके द्वारा महात्मा गांधी ने सशस्त्र ब्रिटिश सेना को बिना किसी क्रांति के भारत छोड़ने को मजबूर कर दिया । भगवान महावीर के सिद्धान्त धार्मिक क्षेत्र में ही नहीं अपितु व्यवहारिक क्षेत्र में भी अत्यधिक उपयोगी हुए हैं। उन्होंने बताया कि वाणी में महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International श्री जिनेद्रकुमार सेठी श्री. म. दि. जैन उच्च मा. विद्यालय स्यादवाद जीवन में अपरिगृह व्यवहार में अहिंसा तथा विचारों में अनेकान्त का प्रयोग करना चाहिए । श्रहिंसाः हिंसा के द्वारा विश्व के सम्मुख रखी सबसे बडी समस्या का हल हो सकता है। महावीर ने अहिंसा का अन्य महापुरुषों से अलग रूप दिया है । उन्होंने हिंसा के बारे में बताया कि किसी के में मन में खोटे भाव की उत्पत्ति ही हिंसा है । उदाहरण के तौर पर एक बधीर ( मछलियों को पकड़ने वाला ) दिन भर जाल को पानी में फेंककर भी मछली नहीं पकड़ पाता तो भी वह हिंसक कहलायेगा क्योंकि उसके मन में मछली पकडने की इच्छा रहती है जबकि एक डाक्टर के द्वारा अप्रेशन करते हुए एक मरीज मर भी जाये वह हिंसक कहलायेगा क्योंकि उसके मन में मरीज के प्रति कोई द्वेष का भाव नहीं होता है । हिंसा का अर्थ भय से नहीं लिया जा सकता है । भय मनुष्य को मन को ही नहीं श्रपितु शरीर से भी कमजोर बना देता है । श्रहिंसक तो अभय होता है । और अभयदान For Private & Personal Use Only 3-11 www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy