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________________ यो महावीर रा समवसरण में, सब प्राणी मिल नेह लियो । राजा पर रंक में नहीं अन्तर, ईश्वर रे घर तो एक रह्यो । कर ऊच-नीच रो उण्मूलन यो अनेकान्त रो सार गह्यो ।। काहे तन निरखे मन इरखे __ परिग्रह धन दौलत नाहि धरे। पल में तन धन की राख बणे, स्वामी री शिक्षा अमर रहे ।। मत भूलो ये तीन रतन, चरित्र ज्ञान-सम्यक् दर्शन । मोक्ष प्राप्त करबा ताई, भगवान रा बताया ये साधन ।। ये महावीर सिद्धान्त है, बेथाक अनन्त अपार है । है बे-हिंसा और अनेकान्त री, महती हुई जल धार है ।। प्राणी रा पणे रो भार लियो, जब तक या पिरथी वणी रहे । समभाव-जाति और धर्मात्नया, स्वामी री जुग जुग ऋणी रहे ।। 2-138 महावीर जयन्ती स्मारिका 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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