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________________ योग्यता, कार्यकुशलता और ईमानदारी के कारण छुटपन में ही उन्होंने सामाजिक कार्यों में भाग लेना वे शीघ्र ही पोस्ट मास्टर बना दिए गए और शुरू कर दिया था । जैन कुमार सभा आगरा के बनारस जैसे नगर में बरसों पोस्ट मास्टर रहे। वे कर्मठ सदस्यों में से थे। प्रारम्भ में उन्होंने वे बड़े ही धर्मात्मा, दयालु और परोपकारी थे। सौदागरी की दुकान की । वह अधिक दिन नहीं रिटायर होते समय उनको हृदय स्पर्शी बिदाई दी चली तो उसे छोड़कर टोपियों का व्यापार शुरू गई। वहां के स्यावाद महाविद्यालय की स्थापना किया जो दूर दूर तक खूब चला । अपने सद् . में उनका भी हाथ था। विचार और कुशल व्यवहार से वे शनैः शनैः ख्याति और लोकप्रियता की ओर बढ़ने लगे। पेंशन लेकर वे आगरा लौट पाए और कुछ वर्ष बाद तीन पुत्र और उनकी माता को छोड़कर ___ महावीर प्रेस की स्थापना-सन् 1921-22 स्वर्गवासी हो गए। उनकी धर्मपत्नी साक्षात गृह में आपने एक बड़ी मशीन खरीद कर आगरे में लक्ष्मी थी। तीन पुत्रों में सबसे बड़े सालिगराम जी महावीर प्रेस के नाम से एक प्रेस खड़ा कर थे, मझले मक्खनलालजी और सबसे छोटे लिया । आपकी मिलनसारी मेहनत और भलमनकपूरचन्दजी। साहत से प्रेस खूब चमका । प्रान्त के सरकारी प्रेस से राजकीय छपाई के लिए भी उसे मान्यता रघुनाथदासजी के तीन पुत्र--बा. रघुनाथ मिल गई। . दासजी के सबसे बड़े श्री सालिगरामजी आगम ___ सच्चे समाज सेवी और निर्भीक देशभक्तश्रद्धानी और तत्वज्ञानी थे । संसार से विरत हो यह प्रेस प्रागरे में सभी कार्यकलापों का एक प्रमुख उन्होंने प्राचार्य 108 श्री शान्तिसागरजी महा केन्द्र था। शायद ही कोई जैन विद्वान अथवा राज से क्षुल्लक दीक्षा ले ली और अजितकीर्ति सम्पादक रहा हो जो उनके पास न आया हो और के नाम से प्रसिद्ध हुए। अन्त समय आपका उन्हें न मानता हो । श्री नाहटाजी और जयपुर में बीता। वहां वे असाध्य रोग से पीड़ित कापड़ियाजी के दर्शन मुझे वहीं हुए थे । वाणीहो गए । अन्त समय पाने पर पाप चतुर्विध भूषण पं तुलसीरामजी बड़ौत और पं० नन्दपाहार का त्याग कर मुनि पद धार पद्मासन '. किशोरजी माथुर जब भी आगरा आते वहीं ठहअवस्था में सन् 1942 में स्वर्गवासी हो गए। रते । महेन्द्रजी, डा० सत्येन्द्र, किशोरीदासजी श्री सालिगरामजी से छोटे मक्खनलालजी वाजपेयी, परिपूर्णानन्द वर्मा, केदारनाथ भट्ट का .. भी जमघट वहां रहता। जैन कुमार समा की व्यापारी बने और अधिकतर बम्बई में रहे । उनका चर्चा मैं ऊपर कर ही चुका। इसके अतिरिक्त वे भी स्वर्गवास हो चुका है। स्थानीय महावीर दिग. जैन इन्टर काल के वरिष्ठ सहायक रहे । प्रागरा दिग. जैन परिषद के भी सबसे छोटे बा. कपूरचन्दजी का जन्म प्रमुख कार्यकर्ता थे । उसकी मीटिंग प्रायः महावीर श्रावण शुक्ला 7 संवत् 1951 को हुप्रा था। प्रेस में ही हुआ करती थीं। वे खुद भी एक सजीव उन्हें दयालु पिता और धर्मपरायण माता के गुण सक्रिय संस्था थे। विरासत में मिले थे । वंश परम्परा की छाया भी पड़ी उन पर । वे पढ़े तो अधिक नहीं थे परन्तु अच्छे देशभक्ति बा. कपूरचन्दजी में कूट-कूट कर भरी , मच्छों के कान काटते थे। बुद्धि और सूझबूझ में थी। सन् 1930 के सत्याग्रह आन्दोलन में प्रापके महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-135 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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