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________________ निरस्त करते रहे । अग्रेज इस द्रोह को कब पर लाद कर वे प्रागरा चले गए। अपनी संपत्ति बर्दाश्त कर सकते थे? का बहुत बड़ा भाग उन्हें वहीं छोड़ देना पड़ा। दीवानजी के खिलाफ षड्यन्त्र और महाराजा प्रागरे में- प्रागरा पहुंच कर किनारी बाजार की हत्या-जब अंग्रेजों ने देखा कि सीधे सीधे के बीचोंबीच मस्जिद के बगल में उन्होंने एक पार नहीं पड़ने की तो उन्होंने दीवान जी के फाटकदार घेरे में पड़ाव डाला जिसे उन्होंने खिलाफ एक गन्दे षड्यन्त्र की रचना की। लोभ . खरीद लिया। यह स्थान प्रागे चलकर झू थाराम लालच देकर कुछ जागीरदारों और अधिकारियों के फाटक के नाम से नगर में विख्यात हुआ। को अपनी पोर तोड़ लिया। 23 फरवरी 1835. यहां उन्होंने एक प्रालीशान हवेली और दुकानों को राज्य द्रोहियों की मिली भगत से षडयन्त्र द्वारा का निर्माण कराया तथा धर्मध्यान के लिए एक तत्कालीन महाराज की हत्या कर दी गई और . चैत्यालय की भी स्थापना की। उस हत्या का दोष दीवान झूथाराम पर डाला गया । पोलीटिकल एजेंट मि. पाल्वस ने कलकत्त __झूथारामजी के पुत्र फतहलालजी और हुकमचन्दजी के पुत्र श्री बिरधीचन्दजी का कुछ से फरमान मंगाकर, जहां उन दिनों ईस्ट इण्डिया कम्पनी का हैड क्वार्टर था, उन्हें उनके पद से समय बाद देहान्त हो गया। तब परिवार का हटा दिया और दौसा में उन्हें नजरबन्द कर साराभार बिरधीचन्दजी के पत्र श्री हीरालालजी और श्री चिम्मनलालजी पर आ पड़ा। इन दिया। दोनों के दो दो पुत्रियां थी, पुत्र किसी के भी नहीं था। तब सेठ हीरालालजी ने कुटुम्ब का एक जयपुर ट्रायल-अग्रेजों ने जयपुर ट्रायल के नाम से दो मुकदमे चलवाए जिनमें से एक दीवान बालक गोद ले लिया । उस बालक का नाम रघुभू थारामजी संघी, उनके बडे भाई हकमचन्दजी नाथ दास रक्खा गया। उसकी गोद का उत्सव बड़े तथा पुत्र फतेहलाल पर था। विद्रोह फैलाने तथा समारोह के साथ किया गया और खूब दान दिया मि. पाल्वस पर आक्रमण कराने का झूठा जम गया। लगाकर उन्हें आजन्म कैद की सजा दी गई और चुनारगढ़ के किले में कैद कर दिया गया। इस आगरे में दीवानजी के इन वंशजों की बड़ी प्रकार इन जनप्रिय राज्यभक्तों को भूठे प्रारोपों प्रतिष्ठा थी । सराफे में उनका बसना काफी ऊंचा की बलिवेदी पर चढ़ा दिया गया जबकि मि.. गिना जाता था। उन्होंने लाखों ही कमाए और पाल्वस पर जो आक्रमण हुअा था वह 4 जन लाखों ही दान पुण्य में दिए। आगरे की जैन को दिन दहाड़े महल के सामने कुपित जनता द्वारा समाज में उनका बड़ा सम्मान था। किया गया था। बा. रघुनाथदासजी-गोद लिया रघुनाथ जयपुर से निष्कासित-संघी झूथारामजी दास एक होनहार बालक निकला। उसने हिन्दी के की नजरबन्दी के साथ ही उनके परिवार के लोगों साथ साथ अंग्रेजी भी पढ़ी और एफ. ए. तक को चौबीस घण्टे के अन्दर जयपुर छोड़ जाने का शिक्षा पाई । बड़े होकर पिता के कारोबार में हाथ हुकम दे दिया गया। इस नाम मात्र की मोहलत ...न बंटा कर स्वावलम्बी बनना ठीक समझा और में जो कुछ वे साथ ले सके उसे गाड़ियों और ऊटों. डाक तार विभाम में नौकरी कर ली। अपनी 2-134 . महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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