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________________ को जानकारी देने का प्रयत्न किया है जिसे महान में एक पद्य प्रचलित हैहोते हुए भी इतिहासकारों ने अन्यथा चित्रित किया है। वह व्यक्ति है संघी झूताराम । राज दण्ड भरघो डालू मालू को डूबी द्यानतदारी। नैतिक विरोध के कारण जिसे काफी बदनाम किया चाकर होकर चोरी कीज, नातर होसीख्वारी। गया है। प्रान्त में अग्रेजों का प्राधिपत्य न जमने देने के कारण जिसे बागी माना गया- देश भक्तों ___ संघी डालू के पुत्र खेतसी थे और खेतसी के का जोस्थिति हुई वह ही उस स्वतन्त्रता की पुत्र मोहनदास थे जो मिर्जा राजा जयसिंह के महामन्त्री थे । सं. 1714-16 में मोहनदास द्वारा बनाये गये प्रामेर के जैन मन्दिर-(जो अव जैन मन्दिर नही है) के शिलालेख जो म्यूजियम में संघी भूताराम के पूर्वजों ने ढूढाहड राज्य रखे हैं-उनमें 'मोहनदासो महामन्त्री जयसिहकी बहुत सेवायें की हैं । इस वंश में कई दीवान- महीभतः' का तथा 'महाराजाधिराज श्री जयसिह प्रधानमंत्री हुए हैं। सर्व प्रथम जिस व्यक्ति का स्तस्य मुख्य प्रधान अम्बावती नगराधिकारी, उल्लेख मिलता है वह है संधी मल्लिदास जिसका निजयशः-सुधा-धवलीकृतविश्वः सार्थकनामधेयः' चौधरी माला या माली जै भौंसा या मालु आदि अादि शब्दों का उल्लेख मिलता है। इससे स्पष्ट नामों से उल्लेख मिलता है। संवत् 1650 में है कि ये महामन्त्री थे। आषाढ़ कृष्णादशमी रविवार को प्रतिष्ठित कालाडेरा कस्बे के दिगम्बर मन्दिर में विराजमान मूर्ति के लेख इसी वंश में मोहनदास के बड़े पुत्र कल्याणमें इस वंश का परिचय है। मोजमाबाद वास्तव्ये दास भी दीवान थे। औरंगजेब के दरबार में लिखा है । भौंसा-बडजात्या गोत्रीय प्रायः अधिक शिवाजी को लाने में जयपुर राजाओं का हाथ परिवार चोरू मोजमाबाद में ही हैं। सं. 1658 था-सागरा से प्रतिदिन का पत्र व्यवहार इन्हीं "ला ज भासा ने बिम्ब प्रतिष्ठा कराई थी। संघी कल्याणदासजी से होता था। मोहनदास के आमेर एवं कई स्थानों के जैन मन्दिरों में इस तृतीय पुत्र अजीतदास भी दीवान थे। सं. 1770 संवत् की प्रतिष्ठित मूर्तियां उपलब्ध हैं । माली जै लाज में भट्टारक देवेन्द्रकीति के पट्टासीन होते समय भौंसा ने उस समय चोरू, दूदू, बोदरसींदरी, ये उपस्थित थे-ऐसा कवि नेमिचन्द्र कृत जकड़ी साखण और अरांई इन पांच स्थानों पर विशाल भोलतः उल्लेख है। सं. 1788 में इनने मन्दिर बनवाये थे जो आज भी मौजूद हैं । सं० जसपर में दो चोक का विशाल मन्दिर बनवाया 1663 में लिखित करकण्ड' चरित्र की प्रशस्ति था जो संघीजी के मन्दिर के नाम से ग्राज भी में इनके पिता का नाम ऊदा मिलता है । उसमें विख्यात है। मन्दिर के सामने ही इनकी विशाल इनके लिए संघभार धुरन्धर लिखा है। इनके हवेली थी। सबसे बड़े पुत्र डालू थे जिनके लिये संघभार धुरन्धर, जिन पूजा पुरन्दर, जिन चैत्यालये प्रतिष्ठा संघी अजीतदास के वंश में संघी हुकमचन्द कारणोक तत्पर शब्दों का प्रयोग किया गया है। और संघी झूताराम हुए । संघी हुकमचन्द फौज सं. माली जे के पुत्र संघी डाल थे वे राज्य में के इंचार्ज थे, दीवान थे। सं. 1881 से 1891 उच्च पद पर थे-बड़े ईमानदार थे-झूठी तक इनका कार्यकाल था। इन्हें राय बहादुर का शिकायत पर दण्ड भुगतना पड़ा था। उनके संबंध खिताब था । वे बड़े बहादुर और वीर थे । राजा के 2-126 महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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