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________________ अमरचन्द लुहाड़ा ने-सं. 1891 में बीस- रत्नकरण्ड थावकाचार और सिद्धि प्रयस्तोत्र के विरहमानपूजा और चौबीसी पूजा की रचना की। हिन्दी पद्यानुवाद, तथा समाधितंत्र-वचनिका, इनकी अन्य कृतियाँ हैं बुद्धिप्रकाश, अमरचन्द्रिका सुकुमालचरित्र, महीपालचरित्र, रत्नत्रय कथा, और समयसार टीका भाषा, जो पन्नालाल षोडसकारणव्रत कथा, अष्टाह्निका कथा हिन्दी गद्य (चौधरी ?) के सहयोग से लिखी। में लिखी। सरूपजी बिलाला ने-इसी समय के लगभग पन्नालाल संघी दूनीवाले भी सदासुखजी के त्रिलोकसार का हिन्दी पद्यानुवाद किया तथा 12 प्रिय शिष्य थे---इन्होंने उत्तरपुराण वचनिका, तत्त्वार्थसूत्र, तत्त्वार्थसारदीपक (सं. 1937), पूजाएँ रची। तत्त्वार्थराजबार्तिक, न्यायदीपिका, द्रव्य संग्रह, सर्वसुखराय पंडित ने---सं. 1896 में समो. रत्नकरंडश्रावका वार, इप्टोपदेश की हिन्दी टीकाएँ लिखीं, और जैन विवाह पद्धति (सं.), धर्मदशावसरणपूजा की रचना की। तार या धर्मप्रदीपक नाटक (सं.) बिम्बनिर्माण विधि (हि.) और विद्वज्जनबोधक इनके स्वतंत्र शिवजीलाल पंडित-अच्छे विद्वान थे, इनका ग्रन्थ हैं। कार्यकाल लगभग 1840 से 1885 ई० तक रहा प्रतीत होता है। रचनाएँ-भगवती आराधना ___ फतेहलाल-भी सदासुखजी के शिष्य और की भावार्थदीपिका संस्कृत टीका (सं. 1918), गजपन्थमण्डलपूजन विधान-संस्कृत (सं. 1939), 19390 पन्नालाल दूनीवालों के मित्र एवं साहित्यिक सहतथा बोधसार, दर्शनसार (सं. 1923), अध्यात्म- योगी थे---विवाह पद्धति, दशावतारनाटक, राजतरंगिणी, रत्नकरण्ड श्रावकाचार और उमास्वामि- वात्तिक, न्यायदीपिका आदि कृतियाँ इन दोनों की श्रावकाचार की हिन्दी टीकाएँ, और हिन्दी में संयुक्त रूप में हैं। चर्चासार, चर्चासंग्रह एवं तेरहपंथ खंडन । मन्नालाल बैनाड़ा ने---सं. 1916 में प्रद्युम्नचैन जी लुहाड्या ने-1850 ई० के लगभग चरित्र की हि. गद्य वनिका लिखी थी। प्रकृत्रिम चैत्यालय पूजा भाषा लिखी । दुलीचन्द बाबा ने जयपुर में 1869 ई० में पारसदास निगोत्या, ऋषभदास निगोत्या के जैन शास्त्रनाममाला नामक एक वृहत् जैन ग्रन्थ पुत्र और पं. सदासुख जी के शिष्य थे-इन्होंने । ___ सूची तैयार की थी। इन्होंने धर्मोपदेशरत्नमाला, सं. 1917 में ज्ञानसूर्योदय की भाषा टीका, 1918 में चतुविशतिका-वचनिका रची। इनके पद आदि सुभाषितार्णव, प्रतिष्ठासार, नित्यधर्मप्रक्रिया और का संग्रह पारस विलास है। जैनागर प्रक्रिया (सं. 1955) की हिन्दी टीकाएँ भी लिखी हैं। नाथूलाल दोसी भी सदासुख जी के शिष्य थे, इन्होंने-परमात्मप्रकाश वचनिका (सं. 1911), महाचन्द विबुध भी इसी समय के लगभग रत्नत्रयजयमाल वचनिका (सं. 1924), दर्शनसार हुए हैं, इन्होंने---संस्कृत, प्राकृत और भाषा में महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-119 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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