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________________ नवलराम खंडेलवाल बसवा निवासी-ने सं. अन्य कृतियाँ तत्त्वार्थसूत्र की संस्कृत टीका तथा 1829 (1772 ई०) में हिन्दी छन्दोबद्ध वर्द्ध मान. भाषा प्रतिष्ठा पाठ हैं। पुराण रची थी, एक विनती संग्रह भी है। बुधजन, अपरनाम बिरधीचन्द्र, पण्डित और लखमीदास पंडित भी संभवतया जयपुर क्षेत्र कवि, ज्ञात रचना तिथियाँ सन् 1802 से 1835 के ही निवासी थे-इन्होंने सं. 1829 (1772 ई०) ई० तक की हैं-छहढाला (सं. 1859), पंचास्तिमें हिन्दी हरिवंशपुराण लिखा था । काय हिन्दी पद्य में (सं.1891), तत्त्वार्थबोध (सं. 1871 या 1889), बुधजनसतसई (सं. टेकचन्द पंडित भी संभवतया जयपुर प्रदेश के 1879), बुधजन विलास (सं. 1892) और इष्ट ही निवासी थे-निश्चित ज्ञात नहीं है, भारी साहित्य- छत्तीसी'। वर्द्ध मान पुराण (हि. पद्य) भी इनकी कार थे-इनकी सर्वप्रसिद्ध रचना सुदृष्टितरंगिणी एक रचना रही बताई जाती है । वचनिका (वि. सं. 1838) है, उसके पूर्व तत्त्वार्थ सूत्र की श्रु तसागरी टीका की वचनिका सं. 1837 जयचन्द छाबड़ा, भारी साहित्यकार, 1804 से में तथा तीनलोक पजा में. 1828 में सीपी 1829 ई. के बीच अनेक पुरातन ग्रन्थों की हिन्दी गद्य इनके अतिरिक्त पद्मनंदिपंचविंशतिका टीका, षट्पा वचनिकाएँ लिखीं-सर्वार्थसिद्धि (सं.1861), परीक्षाहुड वचनिका, बुधप्रकाश छहढाला, ढालवाण, मुख (सं.1863), द्रव्यसंग्रह (सं.1863) तथा इसका कथाकोश छन्दोबद्ध, पंचमेरू, नन्दीश्वर विधान, हिन्दी पद्यानुवाद भी, आत्मख्याति समयसार की कर्मदहन, पंचपरमेष्ठी प्रादि कई पूजाएँ और संस्कृत परमाध्यात्मतरंगिणी वचनिका (सं. 1864), प्रश्नमाला इनकी अन्य कृतियाँ हैं । स्वामिकात्तिकेयानुप्रेक्षा (सं. 1866), अष्टपाहुड़ (सं. 1867), ज्ञानार्णव (सं. 1869 या 1865), जिनदास गोधा जयपुर निवासी ने-सं. 1852 प्रमेयरत्नमाला, पत्रपरीक्षा, देवागम स्तोत्र (सं. (1795 ई०) में हिन्दो पद्य में सुगुरुशतक रचा 1866 या 1886) चन्द्रप्रभचरित्र, (के द्वितीयसर्ग न्याय भाग की), पुण्यास्रवकथाकोश, सामायिकपाठ, था । मतसमुच्चय, भक्तामरचरित्र-हिन्दी पद्य (सं. सेवाराम शाह जयपुर निवासी ने-सं. 1854 1870), फुटकर पद आदि का संकलन में चौबीसी पजा पाठ तथा धर्मोपदेश छन्दोबट (स. 1874). जिनगुण सम्पत्ति कथा सं. 1845) की रचना की डालूराम अग्रवाल, माधवराजपुर निवासी नेथी। यह बखतराम शाह के पुत्र थे। गुरूपदेश श्रावकाचार (सं. 1867) सम्यक्त्वप्रकाश थानासह भी संभवतया जयपुर प्रदेश के ही थे (सं. 1871), पंचपरमेष्ठि पूजन प्रादि कई पुजाएँसं. 1847 में इन्होंने सुबुद्धिप्रकाश की रचना की सब रचनाएं हिन्दी पद्यमयी हैं । थी। जीवनराम गोधा ने-हिन्दी पद्य में अनन्तदेवीदास गोधा वसवा निवासी-ने सं. 1844- व्रतकथा (सं. 1871) एवं अष्टाह्निका कथा रची 45 में सिद्धान्तसार संग्रह वनिका लिखी थी। थी। महावीर जयन्ती स्मारिका 78. 2-117 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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