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________________ निष्कर्ण रूप में यह कहा जा सकता है कि बुद्धि को विशिष्ट प्रतिभाशालिसी मानते हैं और नाटकीय शैली, भाव, भाषा, छन्द, अलंकार, अाने को सरस्वति द्वारा स्वयंवृत्त लिखते है ।। सुभद्रा चरित्रचित्रण, कथावरत प्रादि सभी दृष्टियों से तो उनकी नाटिका लिखने की क्षमता की कसौटी परीक्षण करने पर हस्ति मल्ल के नाटक खरे है। स । नाटकों में नायक नायिका परस्पर में एक उतरते हैं । उनके न टकों का कवित्व कर' न की दुसरे के प्रति अनुरक्त होते हैं। क्रमशः उनके अनुनवीन उद्भावनायें और सुन्दर सूक्तियां तो राग का विक स होता है । उनके परस्पर मिलन सहृदयों को अवश्य अाकर्षित करेंगी। में कुछ बाधायें पाती हैं, उन बाधाओं के दूर हो जाने पर नायक नायिका का स्थानी मिलन हो हस्तिमल्ल के चारों नाटकों को एक तुलना- जाना यही चारों नाटकों का क्रम है। फ्रांसिसी स्मक दृष्टि से देखें तो ऐसा प्रतीत होगा कि वे , ___ अलोचक बूनेलरे के अनुसार नाटक का आधार दो एक सी प्रक्रिया पर लिखे गये हों। उनमें से तीन इच्छा शक्तियों का द्वन्द्व है । ये दो इच्छा शक्तियां का मंगलाचरण मगण से प्रारम्भ हुमा है जो लक्ष्मी प्राप्ति की लिप्सा और विक्रांत कौरव का दो प्रकार की हो सकती हैं। किसी एक व्यक्ति की मंगलाचरण नगण से प्रारम्भ हुअा है जो आयु दो इच्छ। प्रों का द्वन्द्व हो सकता है जैसे सुभद्रा कामना का द्योतक है। इनके चारों नाटकों का नाटिका में राजा भरत रानी वैलाती को भी प्रगन्द मुख्य रस शृंगर है जिनमें अन्तिम कार्य नायक रखना चाहते हैं और सुभद्रा से भी स्नेह करना नायिका का वैवाहिक सम्बन्ध द्वारा स्थायी मिलन चाहते हैं । विक्रान्त कौरव में जयकुम र और अर्कहै । प्रत्येक नाटक पैवाहिक कार्य के बाद पूर्ण हो कीर्ति दोनों सुलोचना को च हते हैं। यहां दो जाता है । केवल अजना पवगंजय नाटक में अजना व्यक्तियों की एक वस्तु की इच्छा शक्ति के कारण पवनं जय का विवाह प्रथम अक में ही हो जाता द्वन्द्व है । अंजना पवन जय में पवनंजय एक ओर है । उसमें उनका पुत्र सहित स्थायी मिलन हो संग्राम का कर्तव्य भी पालन करना चाहते हैं जाने पर नाटक की समाप्ति हो जाती है। उनमें दूसरी ओर स्वयं तथा पत्नी अंजना के एक भी विक्रांत कौरव में स्वयंवर विधि के पश्चात् दूसरे से विक्त रहने के कष्ट का प्रतिकार करना विवाह होता है । अजना पवनंजय में स्वयंवर की चाहते हैं । इस प्रकार एक ही व्यक्ति की दो इच्छ सूचना है और स्वयंवर का अभिनय ही मुख्य शक्तियों का द्वन्द्व है । मैथिली कल्याण नाटक में स्वयंवर का प्रतीक है, क्योंकि पुराण के अनुसार राम सीता को शीघ्र पाना चाहते हैं और सीता अंजना का स्वयंवर नहीं हुआ था । मैथिली राम को शीध्र प ना चाहती है जबकि पिता जनक कल्याण नाटक में धनुभंग का साहस दिखाने वाला सीता का पति होगा इसे प्रकारान्तर से यों कह सभा भूमि में धनुष के बल परीक्षण के पश्चात् सकते हैं सीता उस वर को वरण करेगी जो धनुभंग सीता प्रदान करने का नियम ले चुके हैं। इस करके अपना शौर्य प्रकट करेगा। इस प्रकार उनके प्रकार की अड़चन से टकराकर घटना में द्वन्द्व तीनों नाटक स्वयंबर से सम्बन्धित हैं जिनसे उत्पन्न हो जाता है । इस द्वन्द्व के केन्द्र पर पहुचने कन्यायों की अच्छी सामाजिक स्थिति प्रतीत होती पर सभी नटकों में उन बाधानों पर विजय प्राप्त है । उनको स्वयंवर इतना प्रिय है कि वे स्वयंवर हो जाती है और नायक नायिका का अभीष्ट मिलन का सूत्रपात करने वाले महाराजा अकम्पन की हो जाता है । महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-81 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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