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________________ महत्व हेना चाहिए किन्तु सरस तथा उदात्त नाटक लेखन की ओर जैसे काव्यकारों का ध्यान कथायें चाहे लौकिक हों चाहे किसी सम्प्रदाय नहीं था, उसकी पूर्ति के कारण हस्तिमल्ल दि. विशेष के ग्रन्थों की हों, उनके द्वारा यदि काव्य जैन समाज के इतिहास में चिरस्मरणीय रहेंगे। रचना अपना स्वरूप सजा सकती है तो उनका उपयोग करने वाला भी एक नवीन मार्ग का संस्कृत नाटककार दक्षिण देश में नहीं के अन्वेषक है। शूद्रक का विशेष महत्व इस कारण है बराबर हुए हैं । दशम शताब्दी के शक्तिभद्र नाटककि उसने अपने मृच्छकटिक प्रकरण के लिए सामान्य कार का पाश्चर्य चूडामरिण नाटक है उसमें सूत्रधार जीवन की कथा को चुनकर नया मार्ग अपनाया था के मुख से नटी ने दक्षिणी देश के नाटक के और विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस के लिए राजनीति अभिनय की बात सुनकर कहा था कि दक्षिण देश में के दांव पेंच से सम्बन्धित कथा चुनी थी। इन्हीं नाटक का निर्माण हुअा है तो समझो आकाश में नवीनतानों के कारण से ये नाटककार संस्कृत फूल उग आये हैं और बालू से तेल निकल पाया नाटककारों में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना सके। है। इस प्रकार यदि दक्षिण को नाटककारों की स्व. मैथिलीशरण गुप्त ने साकेत और द्वापर उत्पत्ति के लिए मरुस्थल माना जाता है तब लिखने के साथ म० बुद्ध की सहचारिणी यशोधरा हस्तिमल्ल का स्थान भी कम महत्व का नहीं है को सुनकर जो यशोधरा काव्य बनाया उससे उनकी क्योंकि ये दक्षिण के ही थे । इनके नाटकों की एक महिमा बढ़ी है, इसी कारण जैन ऐतिहासिक नवीनता यह है कि इन्होने स्वयंवर की घटनाओं कथानों को प्राधार बनाकर लिखने के कारण को अपने नाटकों में स्थान दिया। हस्तिमल्ल का भी अपना विशिष्ट स्थान है। जिन कथाओं को आधार बनाकर कई नाटक या काव्य नाट्यकला की दृष्टि से भी हस्तिमल्ल के नाटक बन चुके हों उन्हीं को न चुनकर नई कथानों को संस्कृत नाट्य साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान चुनना विशेष महत्वपूर्ण है । यद्यपि इन कथाओं को बना सकेंगे, केवल विद्वानों की दृष्टि में आने का नाटक का आधार बनाने से हस्तिमल्ल का यश विलम्ब है। भास और कालिदास के न टक भोर नाम उतना व्यापक स्थान नहीं पा सका है सरलता, सरसता के कारण संस्कृत साहित्य में जितना व्यापक यश ये महाभारत, रामायण या अपना विशेष स्थान बना सके हैं। हर्षवर्धन में भी अन्य लौकिक कथाओं की कथा-वस्तु को चुनकर हम सरलता और सरसता पाते हैं। उसके बाद पा सकते थे, यही कारण है कि अधिकांश संस्कृत संस्कृत साहित्य में सरलता का वह रूप नहीं दिखाई के इतिहास लेखकों ने तो नाटककारों में उनके नाम देता है । हस्तिमल्ल हर्षवर्धन के बहुत बाद हुए हैं का भी उल्लेख नहीं किया है और अनेक सस्कृत के किन्तु उनकी सुभद्रा नाटिका और अंजना पवनंजय विद्वान उनका काम और नाम कम ही जानते हैं। नाटक में सरलता, समता और उदात्त भावभूमि के दर्शन होते हैं । इसलिए वाचस्पति गौरेला ने लिखा - दि. जैन साहित्य का पर्यावलोचन करें तो है कि जैन साहित्य के क्षेत्र में हस्ति मल्ल का उसमें धर्म, दर्शन, न्याय के महत्वपूर्ण ग्रन्थों के अनौखा व्यक्तित्व दृश्य काव्यों के प्रणयन में प्रकट अतिरिक्त धर्मशर्माभ्युदय, चन्द्रप्रभ चरित्र प्रादि महाकाव्य, यशस्तिलक और जीवन्धर जैसे चम्पू हुआ है और उन्होंने तेरहवीं शताब्दी का सर्वाधिक काव्य, गद्यचिन्तामणि जैसे गद्य काव्य हैं किन्तु प्रतिभाशाली नाटककार हस्तिमल्ल को माना है।' 2-80 महावीर जयन्ती स्मारिका 78. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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