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________________ स्वप्न पाठक स्वप्न में वृषभ को शुभ फलदायी मानते हैं । वृषभदेव ने हल और बैल के द्वारा केवल कृषि करना ही नहीं सिखाया, अपितु उत्पन्न अन्न से भोजन की विधि भी बताई । अतः कोई व्यक्ति ऐसा नहीं था, जो अन्नाभाव से पीड़ित रहा हो। ऋषभदेव ने लिपि और गणित की शिक्षा अपनी पुत्रियों को दी। ब्राह्मी को भाषा और लिपि का ज्ञान कराया। उसी के नाम पर भारत की प्राचीन लिपि को ब्राह्मी लिपि कहते हैं । भाषाविज्ञानवेत्ताओं का कथन है कि ब्राह्मीलिपि पूर्ण और सर्वग्राह्य थी। आगे चलकर इस लिपि से अनेक लिपियों का विकास हुआ। आज की देवनागरी लिपि उसी का विकसित रूप है । ब्राह्मीदेवी का एक मन्दिर, चम्बाघाटी के भरभौर नामक स्थान पर प्राप्त हुआ है । मन्दिर प्राचीन काल का अवशेष है । हो सकता है कि ऋषभदेव ने अपनी पुत्री को उधर का राज्य दिया हो प्रौर उसके अच्छे कार्यों ने उसे देवी के रूप में प्रसिद्ध कर दिया हो, अथवा दीक्षा धारण कर उसने वहां रूप किया हो और शताब्दियों तक किसी दिव्यशक्ति के रूप में पूजी जाती रही हो । ब्राह्मी के दीक्षा धारण करने की बात जिनसेन के हरिवंश पुराण से प्रमाणित है। 27 ऋषभदेव ने अपनी दूसरी पुत्री सुन्दरी को प्रांकों का ज्ञान करवाया । उससे गणित विद्या का प्रसार समूचे जगत में हुआ । श्राज जैनाचार्यों के लिखे गरिणत-सम्बन्धी महत्वपूर्ण ग्रन्थ मिलते हैं। लिपि और ग्रांक शिक्षा के सन्दर्भ में महापुराण का उद्धरण है " तद्विद्याग्रहणे यत्नं पुत्रिके कुरुतं युवाम् | तत्संग्रहणकालोऽयम् वयोर्वर्ततेऽधुना ॥ इत्युक्त्वा मुहुराशाम्य विस्तीर्णे हेमपट्टके । अधिवास्थ स्वचित्तस्थां श्रुतदवी सपर्यया ॥ विभुः करद्वयेनाभ्यां लिखन्नक्षरमालिकाम् । 2-48 Jain Education International उपादिशतिलपि संख्यास्थानं चाङ्क रनुक्रमात् ॥ ततो भगवतो वक्त्रान्निः सृतामक्षरावलीम् । सिद्ध' नम इति व्यक्तमङ्गलां सिद्धमातृकाम् ॥ प्रकारादि हकारान्तां शुद्धां मुक्तावलीमिव । स्वरव्यञ्जनभेदेन द्विधा भेदमुपेयुषीम् ॥ प्रयोगवाहपर्यान्तां सर्वविद्यासु सन्तताम् । संयोगाक्षर सम्भूति नैकबीजाक्षरेश्चिताम् ॥ समवादीधरद् ब्राह्मी मेधाविन्यति सुन्दरी । सुन्दरी गणितं स्थानत्रमैः सम्यगधारयत् ।। 28 इसका अर्थ है - तुम दोनों के विद्याग्रहण का यही समय है, अतः विद्या प्राप्ति में प्रयत्न करो । भगवान् वृषभदेव ने ऐसा कह कर, बार-बार उन्हें आशीर्वाद दिया तथा स्वर्ण के विस्तृत पट्ट पर, अपने चित्त में स्थित श्रतदेवता का पूजन कर स्थापित किया । फिर दोनों हाथों से - दाहिने हाथ से अक्षरमालिका रूप लिपि का और बायें हाथ से संख्या का ज्ञान कराया। जो भगवान् के मुख से निकली हुई है, जिसमें 'सिद्ध' नमः ' इस प्रकार का मंगलाचरण अत्यन्त स्पष्ट है, जिसका नाम सिद्धमातृका है, जो स्वर- व्यञ्जन के भेद से दो भेदों को प्राप्त है और शुद्ध मोतियों की माला के समान है, ऐसी प्रकार को आदि लेकर हकार- पर्यन्त तथा विसर्ग, अनुस्वार, जिह्वामूलीय और उपध्मानीय इन प्रयोगवाह पर्यन्त समस्त शुद्ध अक्षरावली को बुद्धिमती ब्राह्मी पुत्री ने धारण किया और सुन्दरी ने इकाई-दहाई आदि स्थानों के क्रम से गणितशास्त्र को भलीभांति अवग्रहण किया। जगद्गुरु वृषभदेव ने अपने पुत्रों को भी अनेक शास्त्र पढ़ाये । भरत को अर्थशास्त्र, वृषभसेन को गन्धर्वशास्त्र, अनन्तविजय को चित्रकला आदि कलाओं का ज्ञान, बाहुबली को कामशास्त्र, श्रायुर्वेद, धनुर्वेद, रत्नपरीक्षा श्रादि की जानकारी का निरूपण किया । लोकोपकारक सभी शास्त्र महावीर जयन्ती स्मारिका 78 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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