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________________ तत्त्वार्थसूत्र के भाष्यकार ने अपनी सम्पूर्ण परिचय-परक प्रशस्ति दी है, परन्तु प्रशमरतिकार ने अपना नामोल्लेख भी नहीं किया है । इससे दोनों का रुचि-भेद प्रकट होता है । इन ग्रन्थों का जो पारस्परिक भावगत साम्य है, उसका कारण तत्त्वज्ञान का एक ही स्रोत से उद्भूत होना संभव है। इसी कारण पारिभाषिक शब्दों में समानता है । शब्दगत साम्य इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि तत्त्वार्थसूत्र भाष्य व प्रशमरतिकार के समक्ष विद्यमान थे और वे जिन पूर्वकवियों द्वारा रचित प्रशभजननशास्त्रपद्धतियों का उल्लेख करते हैं सभाष्यतत्त्वार्थसूत्र उनमें से एक है। प्रशमरतिप्रकरणकार स्वयं कहते हैं कि जिनवचनरूप समुद्र के पार को प्राप्त हुए महामति कविवरों ने पहले वैराग्य को उत्पन्न करने बाले अनेक शास्त्र रचे हैं। उनसे निकले हुये श्रु तवचनरूप कुछ करण द्वादशाङग के अर्थ के अनुसार हैं । परम्परा से वे बहुत थोड़े रह गये हैं, परन्तु मैंने उन्हें रङ्क के समान एकत्र किया है। श्रतवचनरूप धान्य के कणों में मेरी जो भक्ति है, उस भक्ति के सामर्थ्य से मुझे जो अविमल, अल्प बुद्धि प्राप्त हुई है, अपनी उसी बुद्धि के द्वारा वैराग्य के प्रेमवश मैंने वैराग्य-मार्ग की पगडंडी रूप यह रचना की है ।12 ___ इन कारिकामों से स्पष्ट है कि उक्त प्रकरण की रचना विभिन्न विशिष्ट ग्रंथों को लक्ष्य में रखकर उनका सार ग्रहण कर की गई है, उनमें से एक तत्त्वार्थसूत्र व उसका भाष्य भी है । शब्दसाम्य का यही कारण है। प्रशमरतिप्रकरण अन्यकर्तृक रचना प्रतीत होती है, क्योंकि एक ही व्यक्ति दो ग्रन्थों में दो भिन्न मतों का प्रतिपादन नहीं कर सकता। प्राचीन (सिद्धसेन-हरिभद्र आदि) तथा नवीन विद्वानों में दोनों के एककर्तृत्त्व की जो भ्रान्ति है, उसका कारण उक्त शब्द साम्य ही प्रतीत होता है । ॐ 1. प्रशमरतिप्रकरण कारिका 194 3. वही, 2-9 5. तत्त्वार्थसूत्र 5-29, 5-30, 5-31, __5...32 (दिगम्बर पाठानुसार) 7. तत्त्वार्थ सूत्र 1-23 9. तत्त्वार्थसूत्र 1-30 11. तत्त्वार्थसूत्र 1-1 13. तत्त्वार्थसूत्र 1-9 का भाष्य 15. तत्वार्थसूत्र 1-1 का भाष्य । 17. तत्त्वार्थ सूत्र 1-1 का भाष्य 19. तत्त्वार्थ सूत्र 1-3 का भाष्य 21. प्रशमरति 225 23. तत्त्वार्थ सूत्र 2-7 का भाष्य 2. तत्त्वार्थसूत्र 2-8 4. प्रशम. 204 6. प्रशमरतिप्रकरण कारिका-2221 8. प्रशमरति 226 10. प्रशमरति 230 12. प्रशमरति 194 14 प्रशमरति 230 16. प्रशमरति 231 18. प्रशमरति 223 20. तत्त्वार्थ सूत्र 1-13 22. प्रशमरति 156 24. तत्त्वार्थसूत्र 5238 महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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