SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रशमरतिप्रकरणकार तत्त्वार्थसूत्र तथा भाष्य के कर्त्ता से भिन्न 'प्रशमरति प्रकरण' नामक श्वेताम्बर सम्प्रदाय का ग्रन्थ 'तत्वार्थ सूत्र' के कर्ता प्राचार्य उमास्वाति की रचना बहुत प्राचीनकाल से मानी जाती रही है। सिद्धसेन गरिए, जिनदास महत्तर श्रादि श्वेताम्बर प्राचार्यों एवं ग्रन्थकारों ने उसे प्रसंदिग्ध रूप से उमास्वाति की कृति माना है । विद्वान् लेखक ने प्रशमरतिकार की मान्यताओं का तत्वार्थ सूत्रकार की मान्यतानों के साथ जो साम्य बताया है वह तो तत्वार्थसूत्र के आधार पर है किन्तु वैषम्य का श्राधार सूत्र ग्रन्थ न होकर उसका भाष्य है । भाष्य सूत्रकार कृत है अथवा नहीं यह अभी पूर्ण निश्चय के साथ नहीं कहा जा सकता । स्वर्गीय जुगलकिशोरजी मुख्तार ने अपने 'श्वेताम्बर तत्वार्थसूत्र और उसके भाष्य की जांच' शीर्षक निबन्ध में, जो उनकी पुस्तक 'जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश' में ग्यारहवां है भाष्य को उमास्वाति कृत न मानने में जो तर्क दिये हैं वे अकाट्य चाहे न हों और कुछ विद्वान् उनसे सहमत न भी हों तो भी वे सर्वथा उपेक्षरणीय नहीं हैं । अतः भाष्य के आधार पर ही 'प्रशमरति प्रकरण' को उमास्वातिकृत नहीं मानना कम जँचता है फिर भी निम्न निबंध इस दिशा में ऊहापोह के लिए मार्ग प्रशस्त करता है यह भी कम महत्व की बात नहीं है। - पोल्याका 2-2 तत्त्वार्थसूत्र जैन तत्त्वज्ञान का संग्राहक, सुन्दर सुव्यवस्थित व महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जो दोनों ही सम्प्रदायों में आगम-ग्रन्थों की भांति ही समादृत है । तत्त्वार्थसूत्र का भाष्य स्वोपज्ञ है या अन्योपज्ञ यह प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है । श्वेताम्बर परम्परा स्वोपज्ञ भाष्य के अतिरिक्त प्रशमरतिप्रकरण श्रादि ग्रन्थों को उमास्वाति प्रणीत मानती है । प्रशमरतिप्रकरण 313 कारिकाओं में रचित ग्रन्थ है, जिसमें संक्षेप में जैन तत्त्वज्ञान को गुम्फित किया गया है । प्रायः सम्पूर्ण प्राचीन जैन साहित्य प्राकृत भाषा में प्रणीत है । तत्त्वार्थसूत्रकार महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International डॉ० कुसुम पटोरिया आजाद चौक सदर, नागपुर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy