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________________ भंगों के प्रागमिक रूप भंगों के सांकेतिक रूप ठोस उदाहरण स्यात् अस्ति प्र. उ. वि. है । यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार करते हैं तो प्रात्मा नित्य है। स्यात् नास्ति प्र.उ. वि. नहीं है। यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते हैं तो प्रात्मा नित्य नहीं है । (112 उ, वि, है। यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार स्यात् अस्ति नास्ति च करते हैं तो प्रात्मा नित्य है और (म उ1 वि नहीं है। यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य नहीं है । ((प्र. ० अ.) य उ यदि द्रव्य पोर पर्याय दोनों ही स्यात् प्रवक्तव्य अपेक्षा से या अनन्त अपेक्षामों से 'प्रवक्तव्य है। एक साथ विचार करते हैं तो अथवा प्रात्मा प्रवक्तव्य हैं (क्योंकि दो (प्र०यउ प्रवक्तव्य है। भिन्न-भिन्न अपेक्षानों से दो अलग २ कथन हो सकते हैं किन्तु एक कथन नहीं हो सकता)। (प. उ. वि. है . (अ.प्र)य उ. यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार स्यात अस्ति च प्रवक्तव्य च ।। करते हैं तो मात्मा नित्य है किन्तु प्य वक्तव्य है। यदि प्रात्मा की द्रव्य पर्याय दोनों या या अनन्त अपेक्षाओं की दृष्टि से (117 उ.वि, है ० (अ)य 231 एक साथ विचार करते हैं तो मात्मा प्रवक्तव्य है। प्रवक्तव्य है। स्यात् नास्ति च (अ उवि नहीं है०(प्र.अ.) उ यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार प्रवक्तव्य प्रवक्तव्य है। करते हैं तो प्रात्मा नित्य नहीं है किन्तु यदि अनन्त अपेक्षा की (प्र.उवि नहीं है ० (प्र०)य- उ. रष्टि से विचार करते हैं तो अवक्तव्य है। प्रात्मा प्रवक्तव्य है। स्यात् अस्ति च नास्ति च (117 उ.वि है ०७. उ.वि. यदि द्रव्य दृष्टि से विचार करते प्रवक्तव्य च (म.प्र.)य हैं तो प्रात्मा नित्य है और यदि उ. अवक्तव्य है । पर्याय दृष्टि से विचार करते हैं या तो मात्मा नित्य नहीं है किन्तु 11 उवि है. उ.वि. यदि प्रात्मा अनन्त अपेक्षाओं की नहीं है. (अ) दृष्टि से विचार करते हैं तो 'उ. प्रवक्तव्य है। प्रात्मा प्रवक्तव्य है। 1-44 महावीर जयन्ती स्मारिका 77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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