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________________ प्राज उन्हीं के दिये हुए उपदेशों को सही रूप वासियों को पुनर्जन्म एवं कर्म सिद्धान्त को शिक्षा में समस्त मनुष्य मान कर अपने जीवन में उतारें, दी थी और उन्हें बताया था कि वनस्पति में भी तथा उसका उचित पालन भी करें। इसी पुण्यवेला जीव होते हैं, इसलिये हिंसा और मांसाहार से दर में हम मानव जगत् के प्राणियों के लिए सुवर्ण रहना चाहिये । स्वयं पेथागोरस जैनों की भांति अवसर प्राप्त हमा जिससे हम प्रात्मा को परखें, हिसा धर्म का पालन करता था और कई अभक्ष्य आत्म निरीक्षण करें और यह अनुमान लगा कि शाक-सब्जियों का भोजन नहीं करता था। यूनान प्रभी तक वास्तव में सही रूप में भगवान महावीर के राजा डेमेट्रियर्स तीर्थकर महावीर स्वामी के अनन्य स्वामी के उपदेशों, सिद्धान्तों का समावेश हमारे भक्त थे। उन्होंने प्रात्मध्यान की साधना के लिये जीवन में हो पाया है अथवा नहीं, या उनसे हट अपने यहां भगवान महावीर की मूर्ति की स्थापना कर भ्रष्ट तो नहीं हो गये हैं और ऐसा कर सिद्धांत की थी । फिलिस्तीन के महात्मा मूसा के जीवन के कितने परे गर्त में हैं। इस तथ्य का निरूपण पर भी तीर्थकर महावीर की शिक्षाओं का प्रभाव प्रात्म-ज्योति प्रज्ज्वलित कर अवलोकन करते हैं बताया जाता है। उनका अहिंसा का सन्देश ईरान और एक अनुमान प्रांकते हैं कि अभी तक कितनी से आगे फिलिस्तीन, मिस्र और यूनान तक पहुंच स्वस्थता, सिदान्तों और उपदेशों के आधार पर गया था। फिलिस्तीन एस्सेन लोग कदर महिंसा. प्राप्त की है। जीवन के कितने विकारों, हिंसा को वादी थे। मिस्र में शाकाहार का प्रचलन था। 81 त्याग दिया है। ई० में भृगुकच्छ के श्रमणाचार्य ने स्थेन्स में पहुंच ___ इस प्रकार भगवान महावीर स्वामी के सिद्धांतों कर अहिंसा धर्म का प्रचार किया था ।' कहा व उपदेशों से मानव जीवन और समाज तथा देश जाता है कि 892-999 ई० तक अफगानिस्तान के में स्वस्थता का निर्माण हो तो, एक स्वस्थ समा- राज्य सिंहासन पर समनीडेस नामक राजा ने नता देश में स्थिर होगी जिससे असामाजिकता का शासन किया था, जो जैन धर्मावलम्बी था। भगवान् जन्म नहीं हो सकेगा और समाजवाद का निर्माण महावीर के युग में पारस देश का भारतवर्ष से प्रासान हो सकेगा। अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध था। ईरान के इतिहास तीर्थकर महावीर के उपदेश केवल भारतवर्ष प्रसिद्ध सम्राट कुरूष का पुत्र राजकुमार प्राद्रंक में ही नहीं अपितु देश-देशान्तरों में भी अलख (उद्देइज्ज) तीर्थंकर महावीर का अनुयायी था। ज्योति प्रकाशित कर रहे थे। 580 ई० में उत्पन्न उसने भगवान महावीर के पास आकर प्रव्रज्या यूनानी दार्शनिक विद्वान पेथागोरस ने भगवान धारण की थी। उस युग में ईरान में अहिंसा और महावीर के सिद्धान्तों से प्रभावित होकर अपने देश- अपरिग्रह का व्यापक प्रचार था। 1. एच० जी० रॉलिन्सन : इण्डिया इन युरोपियन लिटरेचर एण्ड थाट्स, पृ० 5 2. डा० कामताप्रसाद जैन : तीर्थकर भगवान महावीर और प्राधुनिक युग में उनकी शिक्षा का महत्व पृ० 12 1-38 महावीर जयन्ती स्मारिका 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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