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________________ "बहुंपि लघटुजन निहे" कम हों। मनुष्य समाजवाद में समान होता है। -ग्राचारांग 0,1,2,5 दम पर इस प्रकार अपरिग्रह और समाजवाद का अटूट और अधिक मिलने पर भी संग्रह न करें। सम्बन्ध है। -मोरारजी देसाई (तीर्थंकर महावीर) "वियारिणयादु क्खबिवध्दणं धणं" -उत्तर ध्ययन सूत्र 19,98 ग्राज जितने भी वाद जैसे समाजवाद, साम्य. धन दुःख बढ़ाने वाला है। वाद निरतिवाद और स्वतन्त्रवाद मादि का जो "जेरण सिया तेण णो सिया" प्रभाव दिखाई पड़ता है इन सब वादों के जन्म की -प्राचारांग सूत्र--1, 2, 4, प्राधारशिला महावीर स्वामी द्वारा दिये गये तुम जिन वस्तुओं से सुख की अभिलाषा करते हो, उपदेश ही है। जिनमें अहिंसा, अपरिग्रह सत्य वास्तव में वे सुखदायक नहीं है। ब्रह्मचर्य आदि जितने भी उपदेश महावीर स्वामी ने दिये हैं। उन सभी को मानव जीवन में उतारने की परिग्रह का चक्र समाज और देश में समान परम प्रावश्यकता है, तभी इन उपदेशों की सार्थकता रूप से घूमता रहना चाहिये । तब तक यह चक्र सिद्ध हो सकती है, जिन मनुष्यों ने इनको अपने लोगों के बीच समानता का रूप लेकर दौडता जीवन में उतार लिया है, उन्हें प्रनन्त प्रानन्द, रहता है, तब तक सभी मनुष्यों की आवश्यकताओं सुख, सन्तोष पोर शान्ति की विपुल उपलब्धि की पूर्ति बराबर नियमित रूप से होती चली जाती है. किन्तु स्थिति इसके एक दम विपरीत हो गई तो अन्य लोगों को कठिनाई का अनुभव होगा और जीवन के चरम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपरिग्रह का निर्माण हो जावेगा। प्रत्येक मनुष्य को जीवन में भगवान महावीर स्वामी द्वारा दिये गये उपदेशों को सही-सही पालन कर ऐसी स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए मानव को उतारना प्रावश्यक हैं। परिग्रह की एक सुनिश्चित सीमा निर्धारित कर लेना चहिये, जब तब तक सीमा निर्धारित ____ भगवान महावीर स्वामी का 2500 वां होगी, तब तक संतोष, शांति का प्राप्त होना दुर्लभ निर्वाण महोत्सव सम्पूर्ण) भारत के सर्वत्र कोनेहै । अहिंसा का तात्पर्य मानव कल्याण, अन्य कोने में अत्यन्त उल्लास के साथ मनाया गया प्राणियों को सुख शांति देना है । सम त अहिंसा के जिस में हर मनुष्य को सहयोगात्मक भावना उपासकों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे दिखाई देती है । भगवान महावीर स्वामी तीर्थकरों परिग्रह की सीमा निर्धारित करें। की श्रेणी में इस युग के 24 वें तीर्थंकर के पद अपरिग्रह के सिद्धान्त समाजवाद से भी आगे पर पदासीन हुए थे। उनके जन्म के समय सम्पूर्ण हैं। जहां समाजवाद की सीमा है, उस से प्रागे भारत अलग-अलग राज्यों में विभाजित हुमा पड़ा अपरिग्रह है। समाजवाद अपरिग्रह में ही निहित था जिनमें अनेक राजा महाराजा अपने राज्यों का है । अपरिग्रह का लक्ष्य भगवान व मनुष्य को एक संचालन करते और मनमाना अत्याचार, बलिदान बनाना है। धर्म क्या है ? धर्म एक है। मानव धर्म और व्यभिचार किया करते थे। भगवान महावीर है कि मनुष्य मनुष्य का शोषण न करे, समाज में स्वामी ने इनके चरित्र व इस कुकृत्य को प्रधर्म ऊंच-नीच का भेद न हो। प्राथिक असमानताएं बता कर जनता को समझाया और उपदेश दिए। महावीर जयन्ती स्मारिका 77 1-37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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