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________________ ऋतुओं ने चक्कर बारह चल जब पूर्ण किए, तप हुआ सफल सब संचित कर्म गये खिर-गल अरु ज्ञान प्रकाशित हुआ सकल ( 11 ) सरवर में प्रमुदित हुए कमल गुन-गुन गूजे भोरे चंचल मधुबन में कुहुक उठी कोयल अरु शांत हुआ जगती का तल ( 12 ) जनता तब उमडी दल की दल नर-नारी, बच्चे, सबल-निबल करने को अपना जन्म सफल प्रभु दर्शन के हित पड़े निकल सारी बाधाएं जातीं टल, निश्चय जब अपना ही अविचल प्रभु का निश्चय था अडिग अटल कैवल्य ज्ञान का खिला कमल थिर हुई दमक दामिनी चपल जुगनू चमके झलमल-झलमल तारे झांके टलमल-टलमल अरु हुप्रा पूर्व का अरुणाचल ( 13 ) सब दिग्पालादिक गए संभल निज-निज यानों पर देव सकल दौड़े, लखने प्रभु सुछवि विमल रह गये अगर-जीवन निष्फल ( 14 ) दुष्टों ने हाथ घिसे मल-मल नहिं शोषण पीड़न सकता चल आश्चर्य ! कई खल गए बदल उनके भी भाव हुए निर्मल उड चली खबर यों शीघ्र मचल बन में ज्यों फैले दावानल रवि उदय हुए ज्यों खिलें कमल त्यों प्राणी हुए मुदित, विह्वल (१ ) पालोकित हुए सभी जल-थल सब कूप-बावड़ी हुए सजल सुरभित मलयानिल चली मचल वन-उपवन भी हो गए सफल . ( 15 ) जय-जय कहते गिरि विपुलाचल सब पहुंच गए तब पायी कल उद्ग्रीव, उझक पंजों के बल कुल निरख रहे प्रभु सुछवि विमल ( 10 ) सरिताएं उमंग बहीं कल-काल खग-कुल ने गाए गान विमल जल-थल-चर नाचे उछल-उछल प्राणी निर्भय हो गए सकल ।। ( 16 ) नयनों में डब-डब भक्ति तरल था धन-धन्य का कोलाहल वचनामृत प्राशा डोरी से बस बंधे थे हृदय सकल 1-7 महावीर जयन्ती स्मारिका 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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