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________________ ( 14 ) ( 18 ) पूर्व-कृत-कर्म अनेक प्रकार, "दुखों से पीड़ित है संसार जीव को कसे कुडली मार, मापको करना जीवोद्धार बद्ध-कर्मों का तप से क्षार, करें तप निज-पर हित सूखकार सिद्ध बन करें भवोदधि पार ॥" करे जब, तब हो जीवोद्धार । ( 19 ) ( 15 ) सकल इच्छानों को तब मार, प्रभू ने त्याग दिया घरबार, लोक है चौदह राजु प्रमान, तजा परिजन, पुरजन का प्यार, उसी में जीव फिरे बिन ज्ञान, मात त्रिशला का लाड़-दुलार ॥ सुलभ हैं यद्यपि जन-धन-मान, ( 20 ) बहुत दुर्लभ है सम्यक्ज्ञान ॥ पालकी चन्द्रप्रभा मनुहार, तभी ले आये असुर कुमार, ( 16 ) ध्यान, तप करके विविध प्रकार, निकलने का नहिं दूजा द्वार, ज्ञातृवन-खण्ड गये सुकुमार ।। धर्म ही करे भवोदधि पार, ( 21 ) भावना बारह उक्त प्रकार, महामानी-मन्मथ को मार, करों से काले केश उपार, प्रभू मन उपजी बारम्बार ॥ कृष्ण दसमी मगसिर शशिवार, ( 17 ) दिगम्बर मुनि दीक्षा ली धार ।। ( 22 ) एक दिन बैठे वीर कुमार अधिकतर कर एकांत विहार, करहिं जब मन में सोच विचार परीषह सहकर विविध प्रकार, देव लोकांतिक प्रभु के द्वार तिरे भव-सिंधु अनेकों तार पाए तब बोध दिया सुखकार जयतु-जय-जय वीर कुमार वीर कैवल्य ( 3 ) जग की पीड़ा से हुए विकल, पथ की बाधाएं सकीं न छल तो छोड़ सभी कुछ पड़े निकल, तप किया घोर अरु रहे अचल जिस भांति मिले जग-दुख का हल, सर्दी, गर्मी, वर्षा का जल खोजूगा, निश्चय किया अटल ।। सब झेला, तदपि रहे निश्चल ( 2 ) ( 4 ) वय तीस वर्ष ही थी केवल, था प्रात्म-तेज का अतुलित बल जब होती है कामना प्रबल, बिन मार्ग मिले थी तनिक न कल प्रति करता है मन्मथ विह्वल, लगता था जिन जीवन निष्फल ऐसे में छोड़े भोग सकल ।। परु प्रायु घट रही थी प्रतिपल 1-6 महावीर जयन्ती स्मारिका 77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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