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________________ दस के ऊपर हो चली थी। मैं अब अपने स्थान ड्राइवर लोग गाड़ी मोड़ने के पूर्व उसे धीमी पर सो जाना चाहता था। मेरे कांधे पर हाथ तक नहीं करते और फिर जोर-तोर से ब्रेक लगाते गड़ाता हुआ वह बोला-'कहिये पाप साहित्य में हैं. इससे साइड के चक्के तक उठ जाते हैं । ऐसे में क्या पसन्द करते हैं गद्य या पद्य ?' एक कृत्रिम यदि गाड़ी न सम्भले, तो सब मरे । वैसे भी टायर सहजता वाणी में पिरोकर उसने मुझसे पूछा था। ज्यादा घिसते हैं।" मैंने उसके सन्तोष के लिये "सिर्फ साहित्य"-इस बार मेरी टोन में गंभीरता मध्यम स्वर में ड्राइवर को पुकारा - "धीरे चलायो कम बंकुरता अधिक थी। फिर भी वह हंसा और भाई, जल्दी किस बात की है ।" सभी लोग तन्द्रा चुप हो गया। में झूम रहे थे। शायद ड्राइवर के साथ साथ किसी __बस क्रमशः बेगवती होती जा रही थी। जब यात्री ने भी मेरे शब्दों पर ध्यान नहीं दिया । पाँख खुलती तो रात की कालिमा के गर्भ में पड़ी में 12 बज चुके थे। बड़ी सूई छोटी के गाड़ी की आवाज भर हमें सुनाई पड़ती थी। मैं साथ एकाकार हो गई थी। समय जाते देर नहीं क्षण भर को जागता मोर फिर सो जाता । एका. लगती। गाड़ी 50-60 की गति पर थी, फिर भी एक उसने मुझे झकझोर दिया-"देखिये भाई साहब, समय की गति मुझे अधिक वेगवान लगी। मैं फिर यह ड्राइवर कितनी रफ गाड़ी चलाता है। अभी तन्द्रा के बहकावे में प्राने लगा। 'ड्राइवर गाड़ी अब गाड़ी बांयी ओर काटी थी न, तब दांयी ओर रोको' एक सशक्त प्रावाज गाडी में ग्रज गई । के चक्के सड़क के ऊपर उठ गये थे । आप तो प्रावाज के बल पर कण्डक्टर ने भी एक दीर्घ सो रहे हैं ।" उसके कहने पर मुझे याद आया तो विशिल दी। गाड़ी रुकने के लिए धीमी होने लगी, लगा-हां क्षण भर पहले गाड़ी में खिंचाव के साथ भीतर की बत्तियां जल उठीं, देखा तो गाड़ी के झटका लगा था। मैंने कहा-रात का समय है । अन्दर सामान रखने की पट्टी पर से एक पटेची सड़क सूनी है। इसीलिए शायद ड्राइवर खुले दिल से गाड़ी चला रहा है । "अरे नहीं साब, ड्राइवर सरक कर मेरे बाजू वाले के सिर पर प्रा गिरी थी। क्रोध से उसकी आँखें पहले से बड़ी और को रोको, नहीं तो गाड़ी उलटते में समय नहीं रक्तिम हो पड़ी थीं। वह सहमी सहनी आवाज में लगेगा।" वह कुछ शिकायत के स्वर में बोला झल्ला रहा था.. गाडी धीरे चलाइये न क्यों था। मैं कुछ कहे वगैर फिर नींद में पाने लगा। पांखें मुदने लगीं । साहूकार को देखकर भागे हुए भागम-भाग मचाये हो ? किसी की जान लेना है कर्जदार की तरह गाडी भागी जा रही थी, यात्री क्या ? कि इतने में माड़ी रुक पड़ी, पर यह क्या मतंगी से हिल रहे थे। गाड़ी रुकी तो यह पीछे लुढ़कने लगी। हम सबको प्राभास हो गया कि पीछे की सड़क का गहरा ___ सड़क के साथ टायरों के घर्षण की एक ढाल है। ड्राइवर हैरान होकर खटाखट ब्रेक लगा भयंकर आवाज हुई । एक खिछाव-सा लगा शरीर रहा था । गाडी लुढकती ही जा रही थी । ड्राइवर को और तब झटके से दूसरी सीट की तरफ उछल झझलाकर जोर-जोर से वड़बड़ाया-बक नहीं लग गये थे हम लोग। रहे हैं। उसकी क्रियाओं में स्फूर्ति प्रा गई थी। __गाड़ी को इस तरह मोड़ा जाना मुझे भी इस गाड़ी के लुडकने में अब वेग मा गया था । बार कुछ अजीब सा लगा। पाजू वाला इस बार ड्राइवर ने एकदम गाड़ी को गेयर में डाल दिया । दबी मावाज को साफ करते हुए बोला-देखा एक छोटा सा झटका लगा हम लोगों को, पर मापने कितना शार्प मोड़ था वह, और ये गाड़ी रुकी नहीं। ड्राइवर ने क्षण भर के लिये 3-10 महावीर जयन्ती स्मारिका 77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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