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________________ सुदर्शन--(दृढतापूर्वक) कैसे नहीं पायेंगे ? उन्हें प्राना पड़ेगा । घबरानो नहीं भाभी ! मैं बुलाकर लाता हूं भाई को । (प्रस्थान) वसुमती--(करुण विलाप करते हुये) कोई बचालो मेरे लाल को । उतार दो इसका विष । हाय ! अब यह कभी नहीं बोलेगा? कभी मुझसे मा नहींकहेगा ? (दीर्घ उच्छवास लेते हुये) कैसा प्यारा है मेरा चन्द्र ! साक्षात् देव सदृश सुन्दर सलौना बालक । बोलता है तो मानो मुख से फूल करते हैं। बलदेव--धैर्य धरें प्राप! बालक अभी निविष हुना जाता है। मैंने मन्त्रवादी को सन्देश प्रेषित किया है । वह प्राता ही होगा। वसुमती--आपका उपकार कदापि नहीं भूलूगी। मेरे चन्द्र को एक बार जीवन दे दो बन्धु ! मैं अपनी समस्त सम्पत्ति न्यौछावर करती हूं। युवक-(प्राकर) मंत्रवादी किसी दूसरे ग्राम गया है । वसुमती--(माथा ठोककर) प्राह ! प्रब क्या होगा ? श्रेष्ठी भी अभी नहीं पाये। सुदर्शन--(प्राकर शीघ्रता से रोष में) और न पायेंगे। हमने ऐसी पूजन न देखी न सुनी । हम कह कह कर थक गये, पर वे तो जैसे बहरे हो गये हैं । बसुमती-क्या हो मया है इन्हें ? चन्द्र के जीवन मरण का प्रश्न उपस्थित है और उन्हें कोई प्रयोजन नहीं ? इतनी कठोरता ! ऐसी पूजा का क्या अर्थ है ? क्या मेरे लाल के प्राणों से भी बहमूल्य है पूजन ? वे नहीं आये तो मैं जाऊँगी वहां । (वसुमती गोद में बालक को लेकर मन्दिर की ओर चल देती है। पीछे-पीछे व्यथित सा जन समूह भी चला जा रहा है। उसमें परस्पर वार्तालाप चल रहा है।) १ला व्यक्ति --श्रेष्ठी मानव है या वज्र । बालक को नाग काटे और उसे पूजन की ही धुन बनी रहे ? असम्भव है। २रा व्यक्ति - अघेर कर दिया भाई श्रेष्ठी ने तो । ऐसा निर्मोही पिता तो आज तक नहीं देखा । ३रा व्यक्ति---बगुला भगत है पूरा । प्रदर्शन कर रहा है । बालक के बचने के लक्षण नहीं दिखते। १ला व्यक्ति---उपाय किया जाता तो बच भी जाता । पर अपने ही हायों अपने पैर पर कुल्हाडी पटकी जा रही है। २रा व्यक्ति--(निराशा के स्वर में) बहुत विलम्ब हो चुका, अब कोई भी उपाय व्यर्थ सिद्ध होगा । १ला व्यक्ति----बालक की ऐसी ही होनहार होगी। २रा व्यक्ति--बन्धु ! यह तो वैसा ही हुआ कि 'छलनी में दूध दुहें और भाग्य को दोष दें।'... ३रा व्यक्ति--विचित्र व्यक्ति है श्रेष्ठी धनंजय । (जिनालय आ गया । श्रेष्ठी अभी भी पूजन में तन्मय है । वसुमती बालक को उनके चरणों में डाल देती है।) वसुमती--(रोष एवं विषाद भरे स्वर में) माप पूजन ही करते रहे । बालक की रक्षा का कोई ध्यान महावीर जयन्ती स्मारिका 77 3-5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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