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________________ जयपुर अपने स्थापना काल से ही जैनकला और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। बडे-बडे विशाल जैन मन्दिर यहां हैं। भट्टारकों की गद्दी यहां रही हैं। प्राचार्यकल्प पं० टोडरमलजी, सदासुखजी आदि विद्वानों के कार्यक्षेत्र होने का सौभाग्य भी जयपुर को ही है। बडे विशाल शास्त्र भण्डार यहां हैं जिनमें हजारों की संख्या में जैनाजन ग्रन्थ हैं । यहां जैनी बड़े बड़े प्रौहदों पर रहे हैं । शासन संचालन में उनका बहुत बड़ा हाथ रहा है। कई सामाजिक प्रान्दोलनों का वह केन्द्र रहा है। आज भी पर्याप्त संख्या में जैन विद्वान् यहां हैं । संख्या की दृष्टि से भी अनुमानतः यहां जैनों की संख्या भारत में सर्वाधिक है। इसीलिए प्रायः लोग इसे जैनपुर के नाम से भी संबोधित करते हैं। प्र० सम्पादक जैनपुर-जयपुर * डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जयपुर राजस्थान की राजधानी बनने के पूर्व जयपुर नहीं मिलते। यही नहीं सभी मन्दिर विशाल एवं नगर ढ़ढाड प्रदेश की राजधानी था। इसके पूर्व कलापूर्ण हैं । चौड़ा रास्तो स्थित ताड़केश्वरजी इस प्रदेश की राजधानी प्रामेर थी। महाराज का मन्दिर शैव मन्दिरों में सबसे प्रसिद्ध एवं सवाई जयसिंह द्वारा 18 नवम्बर सन् 1727 में प्राचीनतम मन्दिर है। इसी तरह गोविंददेवजी इस नगर की स्थापना की गयी । पहिले इस मन्दिर एवं रामचन्द्रजी का मन्दिर यहां के प्रसिद्ध नगर का नाम जयनगर था। बाद में यह सवाई एवं लोकप्रिय मन्दिरों में से हैं । जयपुर नगर एवं जयपुर के नाम से प्रसिद्ध हो गया और अब केवल उपनगरों में स्थित जैन मन्दिरों एवं चैत्यालयों की जयपुर के नाम से विख्यात है। इस नगर के संख्या पहिले 175 मानी जाती थी लेकिन वर्तमान निर्माण का सबसे अधिक श्रेय विद्याधर नामके में कुछ नये मन्दिर और बन गये हैं और कुछ व्यक्ति को है जिसे टाड ने जैन लिखा था लेकिन चैत्यालय कम हो गये हैं । नगर के अधिकांश जैन अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार वह बंगाली था। मन्दिर विशाल एवं कलापूर्ण हैं । जिनमें अत्यधिक मनोज्ञ एवं प्राचीन मूर्तियां विराजमान हैं। विशाल मन्दिरों का नगर : दिगम्बर जैन मन्दिर पाटोदी एवं दिगम्बर जैन मन्दिर तेरहपन्यी बड़ा मन्दिर, यहां के प्राचीनतम जयपुर नगर प्रारम्भ से ही विशाल मन्दिरों का मन्दिर हैं। इनका निर्माण जयपुर के निर्माण के नगर रहा है। यहां जितनी संख्या में शैव, वैष्णव साथ हुआ था । विशाल मन्दिरों में जैन मन्दिर एवं जैन मन्दिर हैं उतनी संख्या में अयन्त्र कहीं भी बड़ा दीवानजी, दिगम्बर जैन मन्दिर छोटा महावीर जयन्ती स्मारिका 77 2-77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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