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________________ का निर्माण स्वयं सम्राट द्वारा कराया गया था। तिथिक्रम के अनुसार दूसरी गुफा मंचापुरी है । यह दो मंजिली है । निचली मंजिल में स्तम्भयुक्त बरामदा और उसके पीछे कोठरियो बनी हैं। इसी गुफा की ऊपरी मंजिल में खारवेल की रानी का लेख है और निचली मंजिल में वक्रदेव और वडुख के लेख मंकित हैं । इससे अनुमान होता है कि ऊपरी मंजिल पहले बनायी गयी थी। इन दोनों गुहामों की कला में भरहुत, बोधिगया और सांची की कला का विकसित रूप प्रतिबिम्बित होता है ।46 प्रो० घोष" का मत है कि भरहुत स्तूप के तोरणद्वार पर उत्कीर्ण अभिलेख पुष्यमित्र शुग के समय से एक शती बाद का या ई० पू० पहली शती के अन्तिम चरण का है। अतः खारवेल की तिथि भी इसी समय रखी जा सकती है। शिशुपालगढ़ उत्खनन : उदय गिरि-खण्डगिरि से 10 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में शिशपालगढ़ को अधिकांश विद्वान खारवेल की राजधानी कलिंगनगर मानते हैं।48 हाथीगुम्फा अभिलेख से इस तथ्य पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता कि कलिंगनगर उक्त पहाड़ियों से कितनी दूरी पर स्थित था । इन पहाड़ियों पर भिक्षुमो के निवास के लिये गुहाएं बनाने का प्रयोजन यह प्रतीत होता है कि उनकी निर्जन और एकान्त पृष्ठभूमि साधु जीवन के लिये उपयुक्त वातावरण प्रदान करती थी। साथ ही यह कलिंग राजधानी से अधिक दूर न थी जिससे मुनिगण वहाँ सुविधापूर्वक धर्मप्रचार और आहार आदि के लिये जा सकते थे और उनके भक्तगण मुनियों के प्रति अपनी भक्ति जताने हेतु इस पवित्र साधनास्थल तक सुविधापूर्वक पा सकते थे। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कलिंगनगर का शिशुपालगढ़ से किया गया अभिज्ञान समीचीन प्रतीत होता है। प्रभिलेख की तीसरी पंक्ति में कहा गया है कि खारवेल ने "प्रथम शासनवर्ष में, तूफान से गिरे हुए (राजधानी के) गोपुर और प्राकार निवास का जीर्णोद्धार कराया।" शिशुपालगढ़ के मतिरिक्त और कोई प्राकार युक्त नगर खण्डगिरि उदयगिरि के समीप नहीं मिला । शिशुपालगढ़ उत्खनन से ज्ञात होता है कि यहां पर तीसरी दूसरी शती ई० पू० में नगर रक्षा के लिये एक दृढ़ दीवार का निर्माण किया गया था। यह दीवार चार चरण में पूर्ण हुई थी। इसमें से तीसरे चरण में निर्मित दीवार 3 से 4 फीट तक मोटी है जिससे ज्ञात होता है कि इस बार इसकी सुदृढ़ता पर विशेष ध्यान दिया गया था। यह चरण पहली शती ई. के मध्य का प्रतीत होता है। दीवार का तृतीय चरण खारवेल के प्रथम शासनवर्ष में पूर्ण हुआ होगा । अतः इससे भी खारवेल का राज्यारोहण काल प्रथम शती ई० पू० का अन्तिम चरण समर्थित होता है । इस प्रकार खारवेल की तिथि से सम्बन्धित अन्तरंग और वाह्य साक्ष्यों पर विचार करके हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि खारवेल का राज्यारोहण ई० पू० प्रथम शती के अन्तिमचरण में 20 ई० पू० के प्रासपास ही हुआ। 1. प्रा० भा० रा० इ०, पृ० 365-68 2. ए गाइड टु सांची, पृ. 13 3. डा० क० ए०, पृ० 37 4. बही, पृ० 36 2.44 महावीर जयन्ती स्मारिका 77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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