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________________ बनर्जी महोदय ने 103 वर्ष का समय खारवेल और नन्दराज के राज्यकालों का अन्तराल न मानकर एक पूर्व प्रचलित संवत् का वर्ष मान लिया है। इस समय इस प्रकार के किसी संवत् के प्रयोग की पुष्टि किसी स्रोत से नहीं होती। अशोक के समान ही खारवेल शासनवर्ष का ही उल्लेख करता है, किसी संवत् वर्ष का नहीं । अतः बनर्जी का कथन स्वीकार नहीं किया जा सकता। हा० रायचौधरी32 का मत है कि 'ति-वस-सत' की व्याख्या पौराणिक कालक्रमानुसार सही प्रतीत होती है । मौर्यों ने 137 वर्ष शंगों ने 112 वर्ष और कण्वों ने 45 वर्ष शासन किया । इस प्रकार कुल अवधि 294 वर्ष हुई जिसे 300 वर्ष माना जा सकता है । अगर पद का अर्थ 103 वर्ष किया जाये तो खारवेल का राज्यारोहण नन्दराज के (103 - 5) = 98 वर्ष बाद या 322 -98 = 224 ई० पू० में हुआ । किन्तु इस समय कलिंग पर मौर्यों का शासन था। इसलिये ति-वस-सत का अर्थ 103 के स्थान पर 300 वर्ष करना उचित है । डा० सरकार33 का ऐसा ही मत है । डा० जायसवाल ने भी इस व्याख्या को स्वीकार किया था, लेकिन उन्होंने खारवेल को पुष्यमित्र शुग का समकालीन सिद्ध करने के लिये नन्दराज का अभिज्ञान शैशुनाग नरेश नन्दिवर्द्धन से किया था । इस नन्दिवद्धन के राज्य में कलिंग सम्मिलित नहीं था। पुराणों से ज्ञात होता है कि महापद्मनन्द ही पहला शासक था जिसने कलिंग पर विजय प्राप्त की। उसने (322 + 12)= 334 ई० पू० तक शासन किया। प्रतः (334-300)=34 ई० पू० खारवेल की राज्यारोहण तिधि हुई । चूंकि इसके पूर्व हम खारवेल की तिथि 20 ई० पू० मान चुके हैं, अतः यहां भी हम उसी तिथि को स्वीकार करते हैं। इस तिथि के आधार पर खारवेल का कालक्रम निम्न प्रकार होगा -- जन्म - 44 ई० पू० (24+16+ 8) युवराज- 28 ई० पू० (20+ 8) राज्याभिषेक-- 20 ई० पू० वाह्य साक्ष्य खारवेल की तिथि निश्चत करने के सम्बन्ध में कुछ वाह्य प्रमाण भी उपलब्ध हैं। ये निम्नांकित हैं-- प्रभिलेख की लिपि: विद्वानों का मत है कि हाथीगुम्फा अभिलेख की लिपि संभवत नानाघाट अभिलेख और हेलियोडोरस के बेसनगर गरुड़ स्तम्भलेख को परवर्ती है 184 ब्राह्मी लिपि के विकास के जो सात चरण बताये गये हैं उनमें से पांचवें चरण का प्रतिनिधित्व बेसनगर गरुड़ स्तम्भलेख, नागनिका के नानाघाट अभिलेख और धनभूति के भरहुत अभिलेख से होता है । छठवें चरण का प्रतिनिधित्व हाथीगुम्फा अभिलेख करता है ।35 राखालदास बनर्जी36 का मत है कि नानाघाट अभिलेख की लिपि क्षत्रप पोर प्राद्य कुषाण शासकों की लिपि से मिलती है । रेप्सन37 का कथन है कि नानाघाट अभिलेख का 'द' मक्षर एक मुद्रालेख के 'द' अक्षर के समान है । इस मुद्रा का समय द्वितीय या पहली शती ई० पू० है । बुहलर38 का भी मत है कि नानाघाट अभिलेख गौतमीपुत्र सातकणि प्रौर उसके पुत्र पुलुभावी के 100 वर्ष पहले का प्रतीत होता है । एन० जी० मजमदार अभिलेख की लिपि का समय 100-75 ई० पू० निर्धारित करते हैं। गौरीशंकर हीराचन्द प्रौझा40 का कथन है कि हाथीगुम्फा अभिलेख में अक्षरों के सिर 2-42 महावीर जयन्ती स्मारिका 77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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