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________________ डा० पाठक उन अध्ययनशील अजैन विद्वानों में से एक हैं जिन्होंने भगवान महावीर पर शोध प्रबन्ध लिखकर पी. एच. डी. की डिग्री प्राप्त की हैं । अपना यह शोध प्रबन्ध प्रापने मुद्रित भी करा दिया है। प्रस्तुत लेख में भगवान महावीर सम्बन्धी कुछ मूर्तिलेखों का और शिलालेखों परिचय प्रस्तुत करते हुए ऐसे लेखों के उजागर करने की आवश्यकता प्रतिपादित की है। वास्तव में जैन मूतिलेखों का इतिहास की दृष्टि से बहुत बड़ा महत्व है । भारतीय इतिहास को कई विलुप्त कडियां इससे जोडी जा सकती हैं । खेद है इस महत्वपूर्ण कार्य की भोर समान ने नहीं के बराबर ध्यान दिया है। -प्र० सम्पादक. भगवान महावीर :मतिलेखों व शिलालेखों में डा० शोभनाथ पाठक, मेघनगर सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह प्रोर ब्रह्म मथुरा के कङ्काली टीले की खुदाई में महा. चर्य के सम्बल से समाज को संवारने वाले २४वें वीर से सम्बन्धित अनेक · मतियां मिली हैं। तीर्थकर भगवान महावीर की लोक व्यापकता महावीर के जन्म वृत्तान्त का विवेचन प्लेट नं. १५ को प्रांकना आसान नहीं है । भारतीय जन-जीवन की मूर्ति से होता है जिस पर विशेष प्रकाश में समाविष्ट उनकी समष्टिगत गरिमा को कला- डा. बूहलर ने डाला है। इसी प्रकार वर्धकारों ने अपने प्रान्तरिक उफान के छलकाव को मान के साधुत्व जीवन पर प्रकाश प्लेट नं. 17 विविध मूर्तिलेखों व शिलालेखों के रूप में उकेर (XVII) से पड़ता है जिसमें वे उपदेश देते हुए कर उजागर किया है, जिसका संक्षिप्त विवरण वताये गये हैं। मूर्ति में तीन श्रोताओं का स्पष्ट यहां प्रस्तुत किया जा रहा है । प्राभास होता है । महावीर की हाथ उठाये हुए मुद्रा-गांभीर्य-सत्यशील की द्योतक मानो पांचों मूर्तिलेखों में महावीर की महत्ता शतधा महाव्रतों को उगल रही है। इसी मूर्ति के साथ होकर प्रस्फुटित हुई है । अतीत के उथल पुथल से अर्थात् प्लेट नं० 17 के समीप महावीर अन्य हमारी यह थाती अस्त-व्यस्त हो गई, पर सज. तीन तीर्थ करों के साथ बड़ी बारीकी से शान्त गता के साथ खोजी गई कुछ उपलब्धियां अद्वितीय मुद्रा में उकेरे गये हैं। दिल्ली संग्रह के क्र. 48. हैं। मूति रूप में तराशी गई महावीर की प्रतिमा 413 की महावीर प्रतिमा भी अनूठी है। देश के कोने-कोने में यत्र-तत्र बिखरी पड़ी है, भाजपावश्यकता है शोध व उत्खनन के आधार कंकाली टीले से महावीर की एक प्रति पर उसे उजागर करने की। हां उक्त माधार सुन्दर प्रतिमा लगभग 53 ई. पू. की मिली है। पर कुछ उपलब्धियों का संक्षिप्त विवरण यहां मथुरा संग्रहालय की महावीर प्रतिमा क्र. 2126 प्रस्तुत है । जो 9 इञ्च ऊंची एक पीठिका पर प्रतिष्ठित है, महावीर जयन्ती स्मारिका 77 2-33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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