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________________ के पवसाता न उतर जैन रावण चित्र-कथा का विदेशी रामकाव्य पर प्रभाव जावा के 'सेरत काण्ड' में कैकयी स्वतः सीता के पंखे पर रावण का चित्र प्रकित करती है पौर सुषुप्तावस्था में लीन सीता के पर्यक पर रख देती है । 'हिकायत सेरी राम' में कोकवी देवी भरत शत्रुघ्न की सहोदरी है । सीता ने कीकवी देवी के प्राग्रह के कारण पंखे पर रावण का चित्र खींच दिया। कीकवी ने उसे सोती सीता के वक्षस्थल पर रख दिया और यह आक्षेप किया कि सोने ता ने उस चित्र का चुम्बन लिया था। राम ने कीकवी पर विश्वास कर लिया। हिन्देसिया के 'हिकायत् महाराज रावण' में यह वृत्तांत पाया है कि रावण वध के उपरांत राम तो लंका में रहते सात माह हो गये । रावण की पुत्री अपने पिता का चित्र सोती सीता की छाती पर रख देती हैं । सीता निद्रावस्था में उस चित्र का चुम्बन करती है, उसी क्षण राम उनके पास पाते हैं और उस दृश्य को देखकर राम क्रोध से प्राग बबूला हो जाते हैं। हिन्दचीन अर्थात् समेर-वाङमय की सर्वाधिक सशक्त कृति 'रामकेति' (सत्रहवीं शताब्दी) है। इसके पचहत्तर- सर्ग में प्रतुलय राक्षसी सीता को सखी बनकर उससे रावण का चित्र प्रकित कराती है और इस चित्र में प्रविष्ट हो जाती है । इसके परिणाम स्वरूप सीता प्रयास करने के बाद भी उस चित्र को मिटा नहीं पाती है, और अंततः हताश होकर पलंग के नीचे उसे छिपा देती है । तदुपरांत राम के इस पलंग पर लेट जाने पर उनको तेज बुखार हो जाता है । जब उन्हें उस चित्र का पता लगता है तो वे लक्ष्मण को सीता को वन में ले जाकर मार डालने का आदेश देते हैं । श्यामदेश की रचना 'राम कियेन' में अदुल नामक शूर्पणखा की पुत्री सीता से रावण का चित्र अंकित करवाती है और तत्पश्चात् इसी चित्र में प्रवेश कर जाती है जिससे सीता उसे मिटा नहीं पाती है। श्याम के उत्तर पूर्वीय प्रांतों के लामो भाषा में सोलहवीं शताब्दी में 'राम जातक' की रचना हुई थी जिसमें भी रावण चित्र के कारण सीता-त्याग होता है । लामोस के 'ब्रह्मचक्र' या 'पोम्नचका' में शूर्पणखा स्वत: छद्मवेश में सीता के पास प्राकर उनसे चित्र बनवा लेती है। __ थाईलण्ड की 'थाई रामायण' में भी इसी चित्र की पर्याप्त चर्चा है। सिंहली रामकथा में उमा सीता के पास प्राकर उनसे केले के पत्ते पर रावण का चित्र अंकित करवाती है । अकस्मात राम के प्रागमन पर सीता इस चित्र को पलंग के नीचे फेंक देती हैं। राम उस पलंग पर बैठ जाते हैं और पलंग कांपने लगता है। कारण विदित होने पर राम अत्यन्त क्रुद्ध हो जाते हैं। रावण के चित्र का मूल उत्स जैन-साहित्य है जिसने विदेशों में जाकर बड़ा उग्र तथा विशिष्ट रूप धारण कर लिया है। (घ) परोक्ष कारण-'पउम चरियं' के पूर्व १०३ में यह कथा प्रायी है कि सीता ने अपने पूर्व जन्म में मुनि सुदर्शन की बुराई की थी और इसके परिणामस्वरूप वह स्वयं लोकापवाद की पात्र बन गयी। 2-14 महावीर जयन्ती स्मारिका 77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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