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________________ उत्कीर्ण है इसमें साहित्यिक अलंकरण का सुन्दर पटुसा वंश बडा प्रसिद्ध रहा है इनका आदि गोत्र परिचय दिया गया है भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति वाफणा था। इन पटुओं की बनवाई हवेलियां के 25 श्लोकों के 100 चरण है । जिनकी समाप्ति जैसलमेर में विद्यमान है जो अपनी बारीक खुदाई मंयामः से होती है उसे बीच गोले में उकेरा गया और जाली कटाव के लिए कला जगत में बहुत ही है पौर 30 मंयाम को केन्द्र मानते हुए 100 प्रसिद्ध हैं । विदेशी कला पारखी इन्हें देखकर हर्ष पंखुडियों में उपयुक्त स्तुति के 100 चरण उकेरे विभोर हो उठते हैं । अब इन सब हवेलियों को गए हैं इस तरह यह शतदल पद्मयंत्र यहां का बहुत भारतीय पुरातत्व विभाग ने अपने अधिकार में ले ही बड़ा महत्वपूर्ण शिल्प है । यही लौद्रवनगर लिया है। यहां सात शास्त्रभंडारों का उल्लेख में मंदिर के पास प्रष्टपदी कल्पवृक्ष भी एक अनुपम मिलता है जिनमें ताडपत्रीय तथा अन्य पाण्डुलिपियां कलाकृति है जो यहां के शिल्पियों ने धढ़ी थी। विद्यमान है। (चित्र संलग्न है)। यहां छोटे बडे मिलाकर कुल जैसलमेर और लौद्रवनगर के बीच अमरसागर 480 शिलालेख उपलब्ध हैं जिनमें सबसे पुराना नामक एक बड़ी विशाल गहरी झील विद्यमान है सं० 1109 का निम्न प्रकार है “ॐ सौहिक पलया जिससे जैसलमेर शहर को पेयजल पहुंचाया जाता मालिकया देवीभूति कारिता'' यहांसे बहुतसे लेखों में है। इसके किनारे गणेशजी का एक प्राचीन मन्दिर थाहरु साह का उल्लेख मिलता है उनकी लघुभार्या है झील के दूसरे किनारे पर भ. प्रादिनाथ का एक सुहागदे तथा बडी भार्या कनकादे का नामोल्लेख है विशाल प्रस्तर जिनालय विद्यमान है जो कला और इन्होंने सं० 1693 में प्रतिष्ठा कराई थी। इनके इतिहास दोनों ही दृष्टि से बडा ही महत्वपूर्ण है । पुत्र का नाम हरराज लिखा हुआ मिलता है। इस तरह जैसलमेर जैन शिल्प का अटूट थाहरु साह राज्य के कोषाध्यक्ष थे। सं० 1891 में अपार भडार है पर इस बहुमूल्य वपौती से बहुत से यहां एक बड़ी विशाल रथयात्रा हुई थी जिसका लोग अपरिचित हैं । जिन्हें बोध कराना हम सबका विस्तृत विवरण पठनीय है यह वाफणा हिम्मत- पुनीत कतव्य है। इसके अतिरिक्त भी यहां बहुत रामजी के मंदिर में शिलाखंड पर उत्कीर्ण है जो सी सामग्री एवं सांस्कृतिक विरासत पड़ी है जिसका राजस्थानी भाषा में है। यहां के प्रोसवालों का विवेचन करना यहां प्रासंगिक न होगा। . मुक्तक इधर चलती कषायें उधर चलती हाथ में माला, है मन में और कहते और करते और कुछ लाला अरे महावीर के अनुयायियों अब तो जरा चेतोतुम्हारे पाचरण ने धर्म को बदनाम कर डाला. --काका बुन्देलखण्डी 2-6 महावीर जयन्ती स्मारिका 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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