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________________ आज के काम को कभी कल पर नहीं छोड़ना और स्वर्ग को मिलाने के लिए सीढ़ियां लगाएं, चाहिये क्योंकि जो प्राज है वह निश्चित और जो भाग में से जलने की शक्ति का जो तत्व है, उसे कल होगा वह अनिश्चित है । जो शक्ति आज के निकाल दू और मृत्यु को नष्ट कर दूं। यह सब काम को कल पर डालने में खर्च होती है क्यों न मेरे बायें हाथ का खेल था । पर मैं सोचता रहाउसका उपयोग आज का काम आज ही करने में अभी क्या है, कल यह कार्य कर लूगा । यों कलकिया जाय । राजस्थानी कहावत है-कर्या सो कल करते कल तो नहीं पाया पर काल आ गया। काम, भज्या सो राम,' किया, वही काम और अतः हे लक्ष्मण, दुनियां को मेरी यही सीख है कि भजा, वही राम-भजन । काम को और राम भजन हमें कोई बात कल पर नहीं छोड़नी चाहिये, तुरन्त को तुरन्त कर डालना चाहिये। जो काम कर उसे कर डालना चाहिए। डाला सो हो गया, नहीं किया सो रह गया। कौन जाने कल पायेगा या नहीं ? कल शैतान का दूत 'समय' शब्द इस बात का सूचक है कि इसमें है । इतिहास के पृष्ठों पर इस कल की धार पर समभाव की आय का स्रोत निरन्तर प्रवहमान कितने ही प्रतिभाशालियों का गला कट गया। रहता है पर समय का यह अर्थ तभी सार्थक बनता 'कल' की उपासना छोड़कर 'प्राज' के ही नहीं है जब व्यक्ति इसकी सामयिकता को पहचाने, 'प्रभी' के उपासक बनो। संत कबीर मानव को इसके प्रति निरन्तर जागरूक बना रहे और समय सावधान करते हुए कहते हैं की उर्वरता से निरन्तर सम्पर्क बनाये रखे । विश्व में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसके पास एक बार काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। भाग्योदयं का अवसर न माता हो । जो इस अवसर पल में परलय होयगी, बहुरि करेगो कब ॥ का स्वागत नहीं करता, तब वह अवसर उलटे पांव लौट जाता है । सम यज्ञ पुरुष हमेशा ऐसे कल, काल बन गया तो फिर जीवन की कला अवसर का लाभ उठाता है । समय की शक्ति और ही नष्ट हो गई। दीपक बुझने के बाद तेल डालने गति को पहचानने की क्षमता केवल मनुष्य में है, से क्या लाभ ? माल लेकर चोर के चले जाये के पशु में नहीं। मनुष्य वर्तमान को वरदान बनाने बाद सावधान होने से क्या लाभ ? जो क्षरण वर्त- के लिए, उसे वरेण्य बनाने के लिए अतीत से मान है, उसे अक्षर बनाने में लग जाओ। जो पल प्रेरणा और अनागत से सपने ले सकता है। और अभी है उसे प्रज्ञा का केन्द्र बना लो, पूजा का अपनी जागरूकता तथा विवेकशीलता में उन्हें, पुष्प बनालो । कहीं ऐसा न हो कि कल की प्रतीक्षा तपाकर, पकाकर, साकार कर सकता है पर इसके करते-करते कल तो नहीं पाये और काल पा लिए प्रमाद को छोड़ना होगा। भगवान् महावीर जाय । पाप और हम तो हैं ही क्या ? सोने की ने अपने शिष्य गौतम को सम्बोधित करते हुए लंका का अधिपति रावण भी इस काल से न बच कहा-समयं गौयम मा पमायए--हे गौतम, क्षण सका। कहा जाता है कि जब रावरण मृत्यु शैय्या मात्र का भी प्रमाद मत कर । पर था तब राम ने लक्ष्मण को रावण से शिक्षा लेने के लिए उसके पास भेजा । लक्ष्मण के प्रार्थना समय को अर्थवान बनाने के लिए कर्तव्य. करने पर रावण ने कहा-मैंने कठोर तपस्या कर परायणता, काम के प्रति निष्ठा और नियमबद्धता यह शक्ति प्राप्त करली थी कि मैं सब कुछ प्राप्त का होना आवश्यक है। जो व्यक्ति अपने प्रति कर सकता था। मेरी तीन इच्छायें थीं-मैं धरती और अपने परिवेश के प्रति जितना अधिक जागरूक 1-90 महावीर जयन्ती स्मारिका 77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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