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________________ वैज्ञानिक प्रगति एवं 21वीं सदी में प्रवेश के बावजूद बाद में आंकी जाती है। वैसे ही हमारी वर्तमान विश्वदृष्टि प्रभुत्व रखने वाली हमारी विश्वदृष्टि अभी भी 19वीं सदी कम आंकी जा रही है। विज्ञान सभी वस्तुओं के पर्यावरण के मॉडल पर आधारित है, जिसके अनुसार मनुष्य प्रकृति की व्याख्या कर चुका है, इसलिए हमारा यह मत बदल रहा से भिन्न है, प्रकृति यंत्रवत् है। प्रकृति के असीमित संसाधन है कि प्रकृति मात्र यंत्र है और मनुष्य उससे अलग है। हमारे हैं और हमारी इच्छानुसार भोग्य हैं। हम प्रकृति के 'इलेक्ट्रोनिक लिंकेज' से भौतिक दूरियां पाटी जा चुकी हैं। अंग नहीं हैं। जब हम स्वयं के तुच्छ स्वार्थों या एकांगी किंतु सचाई फिर भी यह है कि आधुनिक संस्कृति इन दृष्टि से सोचते हैं तो हम व्यापक हितों एवं अंतर्निर्भरता महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों को ग्रहण नहीं कर पा रही है। इसलिए की हमारी पहचान को नकारते हैं। अंतर्निर्भरता के इस यह एक अंतराल-काल है। अज्ञान के कारण हम स्वयं को अकेला एवं खंडित पाते है इसी के साथ परस्पर व्यवहार के सभी स्तरों पर जो हममें भय पैदा करता है—विशेषकर क्षति का भय। भय खंडित मन भी परिलक्षित होता है। इस खंडित मन ने लोभ पैदा करता है कि कुछ भी हमारे लिए पर्याप्त नहीं है मानव मानव-अंतक्रियाओं का एक प्रतिद्वंद्वी 'मॉडल' पैदा किया और लोभ दूसरों पर अधिकार की सोच पैदा करता है। क्षुद्र है-It is me against you. यूनेस्को के संविधान में यह स्वार्थ, दूसरे शब्दों में एकांगी दृष्टि यह सोच पैदा करती। लिखा गया है-At the root of our destructive है कि मैं केंद्र में हूं और दूसरे सभी मेरे हितों की पूर्ति के conflicts is this divided or warring mind. लिए हैं। हम, हमारी जाति, हमारा राष्ट्र केंद्र में हैं तथा दूसरे—यहां तक कि प्रकृति भी हमारी आवश्यकता-पूर्ति खंडित मन के साथ ही अल्पकालिक हितों, संकीर्ण का साधन है। यह निरपेक्ष मन की सोच है जो अपने समूह, मानसिकता, विभाजन की कूटनीति पर आधारित राजनीति जाति, राष्ट्र, विचारधारा को ही अंतिम सत्य मान लेती है। ह । हमें वहां नहीं जाने देती जहां हम जाना चाहते हैं। अब्राहम निरपेक्ष मन विश्व को 'हमारा' और 'उनका' में बांट देता लिकन ने कहा था-A house divided against itself है। निरपेक्ष मन केवल अपनी शर्तों पर ही सह-अस्तित्व cannot stand. राजनीतिक स्तर पर यह अवरुद्धता स्वीकार कर सकता है। उसके सभी तर्क, परंपरा, विचार. इसालए ह, क्याकि अपन निजा स्वाथा का पूति करने वाले धर्मग्रंथ केवल दूसरों को मिटाने तक सीमित हो जाते हैं। समूह राजनीतिक प्रक्रिया पर अपना आधिपत्य रखते हैं। वे यही निरपेक्ष मन जब समहगत हो जाता है तो निरंकशवादी संपूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया की आवश्यकता को महसूस नहीं शासन में बदल जाता है, जहां समानता व न्याय को स्थान करते। ऐसे लोगों के अनुसार राजनीतिक विचार-विमर्श नहीं मिलता। विपरीत और विभाजक हैं। चुनाव के समय सभी वर्तमान सदी में हम पुराने मूल्यों और विश्वास तथा अल्पकालीन जीत के लिए लड़ते हैं। कोई भी यह नहीं नए मूल्यों और बुद्धिमत्ता के बीच जी रहे हैं। पुराने सोचता कि कैसे विभिन्न मतों वाले व्यक्ति एक 'कॉमन' दृष्टिकोणों एवं इस शताब्दी की उभरती वास्तविकताओं के (साझा) लक्ष्य के लिए एक साथ कार्य कर सकते हैं। एक महान अंतराल के बीच हम जी रहे हैं। भविष्यदर्शी ऐसे समय में हमारा लक्ष्य विभाजित मन को समेकित विलियम इरविन थोम्पसन लिखते हैं करना एवं समान लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए एक साथ कार्य 'We live in a culture that we do not see. करने के साधनों को विकसित करना होना चाहिए, जिससे we do not live in industrial civilization. we live . शाति का विकास हो सके तथा नीतियों के निर्माण में विरोध in planetization. what we see is really the past; प्रतीत होने वाले दृष्टिकोणों का समावेश हो सके। what we envision as the future is already the सोलोनी निकामाला ne सोच की शैली में विकासात्मक परिवर्तन present.' अल्बर्ट आइन्स्टीन ने कहा था-The world we अभी हम पूर्णरूपेण नहीं जानते कि क्या उभर रहा है, have made as a result of thinking we have done क्योंकि अभी भी हम औद्योगिक युग और उस काल की cafar creates problems that cannot be solved at संस्थाओं और विश्वासों के बीच जी रहे हैं जो हमारे the same level at which we created them .... we दृष्टिकोण को बनाती हैं। हर उभरता युग, पूर्व युग के shall require a substantially new manner of विश्वासों का स्थान लेता है। किंतु उसकी अनुभूति बहुत thinking if mankind is to survive. IIIIIIIIIIIII 50. अनेकांत विशेष स्वर्ण जयंती वर्ष । जैन भारती मार्च-मई, 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014015
Book TitleJain Bharti 3 4 5 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhu Patwa, Bacchraj Duggad
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year2002
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size33 MB
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