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________________ जैन भारती, मार्च-मई (संयुक्तांक), 2002 - भारत सरकार पं. सं. : 2643/57- डाक पं. सं. : आर जे/डब्ल्यू आर /11/48/2000 जो धर्म हमारे दैनंदिन व्यवहार को प्रभावित नहीं कर सकता, उसका जीवन के लिए कोई लाभ नहीं। -आचार्य तुलसी श्रद्धा अंधविश्वास नहीं है, पवित्र चेतना का विकास है, शक्ति का अजस्र और अक्षय स्रोत है। -आचार्य महाप्रज्ञ भावशुद्धि उत्कृष्ट धर्म है, उसके द्वारा आचरण शुद्ध होता है, शुद्ध आचार चित्त के भावों का शोधन करता है। -युवाचार्य महाश्रमण मर्यादा समवसरण 138वांमर्यादामही HI19 फरवरी 2002 पदयानरराज ख्यासमिति करतीहा महासभा के निवर्तमान अध्यक्ष श्री भंवरलाल डागा से श्रद्धानिष्ठ श्रावक स्व. घीसूलालजी का अलंकरण स्वीकारते हुए उनके सुपुत्र श्री पुखराजजी परमार जीवन की सफलता का सबसे बड़ा सूत्र है-आस्था। यदि आस्था और श्रद्धा केंद्रित है, गहरी है तो सफलता मिल सकती है। यदि आस्था विकेंद्रित है, बिखरी हुई है तो सफलता नहीं मिल सकती। -आचार्य महाप्रज्ञ शुभकामनाओं के साथ प्रकाश ज्वैलार्स 32, नारायणप्पा निकेतन गली, पुराना वाशरमैन पेट, चैन्नई-21 फोन : (0) 5954765, (R) 5957612 भँवरलाल सिंघी, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, 3, पोर्चुगीज चर्च स्ट्रीट, कोलकाता-1 के लिए जैन भारती कार्यालय, गंगाशहर, बीकानेर (राज.) से प्रकाशित एवं सांखला प्रिण्टर्स, बीकानेर द्वारा मुद्रित। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014015
Book TitleJain Bharti 3 4 5 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhu Patwa, Bacchraj Duggad
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year2002
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size33 MB
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