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________________ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं अवसरों पर यह घोषणा की है कि एक देश जो ब्रिटिश साम्राज्य जैसी शक्तिशाली संस्था के विरुद्ध अपनी स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकता है वह ठीक उन्ही तरीकों द्वारा जिनके प्रयोग से स्वतन्त्रता प्राप्त की थी, उसे कायम भी रख सकता है। गांधी जी का यही सीधा-सादा ध्येय है कि हिंसा और खून खराबी को अपना धर्म समझ वाली युद्ध-सेनाओं के स्थान पर शान्ति सेनाओं की स्थापना की जानी चाहिए । देश में जब सम्प्रदायिकता की आग भड़की, तब भी उन्होंने अपनी अहिंसा से ही उसे दबाया । उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि, “खून का बदला खून से या हरजाने से नहीं लिया जा सकता । खून का बदला लेने का केवल एक ही रास्ता है कि हम बदले की भावना न रखते हुए स्वयं को बलिदान करें ।" " गांधी जी ने स्वाराज्य से लेकर युद्ध के संदर्भों तक में अहिंसा का प्रतिपादन किया । इस प्रकार अहिंसा जीवन की एक विकसित कला है। अहिंसा जीवन का एक शक्तिशाली मार्ग है जिसे रचनात्मक कार्यों के माध्यम से अभियुक्त होना चाहिए । २ ६२ अहिंसा का प्राचीन सिद्धान्त गांधी जी को पाकर मौलिक हो गया । उनकी अहिंसा परम्परागत अहिंसा की मित्र हो गयी, क्योंकि उसमें व्यवहारिकता समाहित है। गांधी जी ने उसको व्यवहारोपयोगी बनाकर अहिंसा के पुरातन अर्थों की सीमाओं का विस्तार किया । उन्होंने अहिंसा के वैयक्तिक तत्त्व में सामाजिकता का प्रवेश कराया तथा उसके निष्क्रिय एवं सैद्धान्तिक पक्ष को अत्यन्त सक्रिय बना दिया । उनकी दृष्टि में अहिंसक कार्य भी हिंसक हो सकता है और हिंसक कार्य भी अहिंसा की सीमा में आ सकता है । क्योंकि महत्त्व उस मनःस्थिति का है जिसे ग्रहण करके मानव कार्यं विशेष करता हैं । उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि नाजियो के विरुद्ध शस्त्र उठाकर पोलों द्वारा जो युद्ध हुआ, वह अहिंसक था । अहमदाबाद में पागल कुत्तों को उनका मरवाना भी अहिंसक मनःस्थिति का द्योतक है । इस प्रकार की अहिंसा की भावना विश्व के किसी भी धर्म या सम्प्रदाय में नहीं पायी जाती है । गांधी जी ने इस प्रकार अहिंसा को व्यवहार के धरातल पर लाकर खड़ा कर दिया, जिसे अन्य महापुरुषों ने नहीं कर पाया था । अब प्रश्न आज के संदर्भ में गांधी जी की अहिंसा के सिद्धान्त के पालन का है ? मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ कि आज व्यक्ति समाज, राष्ट तथा अन्ताराष्ट्रीय स्तर पर इसे प्रयोग में लाने का प्रयास कर रहा है। यह जरूर कहा जा सकता १. हरिजन सेवक १८ अगस्त १९४६ २. ग्रेग, रिचर्ड वी० ए० डिसिप्लिन फार नान-वाहलेंस, ५.३ परिसंवाद - ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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