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________________ ३२४ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं भारतीयदर्शन निवृत्तिपरक तथा पाश्चात्य प्रवृत्तिपरक हैं पर विचारणीय यह है कि क्या निवृत्ति जो निःश्रेयस है वह प्राप्तब्य है या प्रेय को प्राप्तव्य स्वीकार किया जाय । तुलसी शोध संस्थान के निदेशक डा. शम्भुनाथ सिंह ( वाराणसी ) ने कहा दिव्यदृष्टि दर्शन है पूर्ण मानव बनना दर्शन का लक्ष्य है। जगत के साथ तादात्य स्थापित करके सत्य को मानव हित में प्रयुक्त करना दर्शन है जो मानव कल्याण का साधक बनता है वह सच्चा दार्शनिक है। बीच में डा० त्रिपाठी द्वारा उठाये गये प्रश्न पर हस्तक्षेप करते हुए प्रो. बदरीनाथ शुक्ल ने कहा--विचारणीय प्रान है कि दर्शन का सम्बन्ध श्रेय से या प्रेय से या दोनों से है। क्या प्रेय से भी दर्शन का सम्बन्ध बन सकता है इस पर विचार किया जाय। पंडित विश्वनाथ शास्त्री दातार ने कहा--कुपथ में न जाकर मानव कल्याण सम्पादित करना दर्शन है । यही हमारा आदर्श रहा है कहा भी है न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यपः । नानाहिताग्निः ना विद्वान् स्वैरी स्वैरिणी कुतः ॥ इस प्रकार आदर्शों के आधार पर अनुमेय तत्त्व का निरूपण दर्शन है। प्रो. रमेशचन्द्रतिवारी ( काशी विद्यापीठ ) ने कहा- क्या इस समय भारत में दर्शन नई दिशा दे सकता है ? दर्शन यदि देखना है तो यह समझने की जरूरत है कि यह देखना किस प्रकार का है ? यदि मानव कल्याण के लिए देखना है तो भारतीय दर्शन के आत्मकेन्द्रित भावना को समष्टिकेन्द्रित करना आवश्यक है। पं. लक्ष्मण त्रिवेदी । सं० सं० वि० वि०) ने कहा- भारतीयशास्त्रों में धर्माचरण के लिए मृत्यु के द्वारा ले जाये जाते हुए मुख में ध्यान भावना रखते हुए विवेचन करना आवश्यक माना गया है । कहा भी है। 'गृहोत इव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत्' । इसीलिए यहां का दार्शनिक लोक हित का सम्पादन मृत्युगृहीत केश की स्थिति में सही रूप से करता था। अतएव सत्य दर्शन बनता है। प्रो. जगन्नाथ उपाध्याय (सं० सं० वि० वि०) ने कहा – मानवकल्याण परक दर्शन के विनियोग का अर्थ है मानव केन्द्रित समस्त हित, विचार, मनुष्येतर की परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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