SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८४ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं विज्ञान की विधि-प्रयोग तथा बिनाप्रयोग के जो स्वयं हो रहा है उसका निरीक्षण तथा इन पर आधारित अनुमान है। सत्य या वास्तविकता विज्ञान के अनुसार सामंजस्य से ही जाने जाते हैं। विज्ञान का दर्शन--इसका विषय है कि क्या कोई वास्तविकता है, जिसका कि अनुभव से सम्बन्ध है ? ज्ञान तथा अनुभव में कोई अन्तर है या दोनों एक-सी मानसिक क्रियाएँ हैं। ज्ञान या अनुभव द्वारा वास्तविकता में सम्बन्ध क्या इस प्रकार का है कि शनैः शनैः क्रमशः वास्तविकता का पूर्ण ज्ञान अथवा अनुभूति संभव हो, या मानव मानसी क्रिया की एक परिधि है जिसके भीतर वास्तविकता का पूर्णज्ञान असम्भव है। मानसी क्रिया का जिसे अंग्रेजी में माइण्ड भी कहते हैं, जीवन में पार्ट या रोल है । देश, काल, कारण, प्रयोजन का वास्तविक स्वरूप क्या है ? इनका परस्पर सम्बन्ध क्या है ? कार्यकारण सम्बन्ध क्या इस जगत की समस्त घटनाओं (फेनोमेना) का तानाबाना है कि कोई भी घटना इससे अतिरिक्त नहीं हो सकती। एक प्रकार की अनिश्चयात्मकता वह है जो हमारे ज्ञान की अपूर्णता के कारण है। दूसरी प्रकार की, अनिश्चयात्मकता वह है जो कार्यकारण के ताने-बाने से अतीत, स्वतन्त्रता या स्वच्छन्दता का स्वरूप है। तीसरे प्रकार की अनिश्चयात्मकता वह है जो कि मिटाई नहीं जा सकती वह है हमारे ज्ञान तथा यन्त्रों के माध्यमों तथा अनुभवों की अपूर्णता। प्रगति तथा विकास में क्या भेद है ? प्रकृति में हम विकास देखते हैं। विकास के लक्षण हैं संश्लेषण तथा साथ ही साथ विभेद। प्रगति का वास्तव में किसी प्रत्यय के लिए ही प्रयोग किया जाना चाहिए। निर्जीव जगत में विकास तथा उन्नति क्या सम्भव है ? यदि है तो किस रूप में ? सजीवजगत में प्रगति का क्या कोई एक ही रूप है या अनेक ? (६) दर्शन का दर्शन-इस शब्द के प्रयोग का एक इतिहास है जिस समय आधुनिक विज्ञान का जन्म हुआ और उसका विकास होने लगा तो क्रमशः उसके अनेक पृथक्-पृथक् विषय हो गये। प्रत्येक विषय में बाह्य जगत तथा मानसी क्रिया की पृथक् पृथक् सीमायें बनाकर अनुसन्धान होने लगे। तब विज्ञान नाम न रख कर प्रत्येक का नाम दर्शन ही था-यथा प्राकृतिक दर्शन। यह वह विज्ञान है जिसका नवीन नाम भौतिकी है। जब विज्ञानों का विकास कुछ अंश तक हो गया और प्रत्येक के अध्ययन कर्ता तथा अनुसन्धान कर्ता केवल उसी विषय तक अपने को सीमित करने लगे, तब दर्शनों के स्थान पर केवल विज्ञान शब्द का प्रयोग होने लगा। ऐसी स्थिति में दर्शन के तीन विभाजन किये गये-तत्त्वविद्या, सृष्टिविज्ञान, मनोविज्ञान । तत्त्वविज्ञान यह अध्ययन करता है कि वास्तविक तत्त्व क्या परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy