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________________ १७२ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलुओं को एक दूसरे से पृथक् नहीं किया जा सकता है उसी प्रकार भारतीय विचार में दर्शन को धर्म से पृथक् नहीं किया सकता। इस प्रसंग में इस विषय को नहीं भूलना होगा कि चार्वाकों का भी उनकी मान्यताओं के अनुसार जीवन मार्ग अर्थात् धर्म था जिसका उल्लेख षड्दर्शनसमुच्चय के प्रसिद्ध टीकाकार गुणरत्न ने किया है। इसके अतिरिक्त, चार्वाक दर्शन को छोड़ कर अन्य सभी भारतीय दर्शनों में कुछ ऐसे तत्त्व हैं जिन्हें हम भारतीय दर्शनों की असाधारण पहचान मान सकते हैं जैसे वैराग्य की आवश्यकता पर बल, आध्यात्मिकता, कर्मवादसम्बलित पुनर्जन्मवाद, भवचक्र से मुक्ति का आदर्श परमशान्ति की प्राप्ति के लिए साधना और योग की आवश्यकता आदि । xxx xxx xxx २. दर्शनों का क्या आस्तिक नास्तिक विभाजन उचित है अर्थात् क्या आस्तिक एवं नास्तिक दृष्टि से निरपेक्ष भारतीय दर्शनों का कोई अपना स्वतन्त्र स्वरूप नहीं है; यदि है तो उसके लक्षण क्या हैं ? यह प्रश्न वस्तुतः उस परम्परागत सामान्य विचार से संलग्न है जिसमें पूरे भारतीय दार्शनिक विचार को आस्तिक एवं नास्तिक के भागों में विभाजित किया जाता है। नास्तिक विचार में चार्वाक, बौद्ध और जैन का ग्रहण कर अवशिष्ट विचारों को आस्तिक वर्ग में रख लिया जाता है। परन्तु यह विभाजन युक्ति संगत नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इसका आधार आस्तिक नास्तिक शब्दों के भ्रान्त अर्थ पर स्थापित है । साधारणतया यह समझा जाता है कि ईश्वर में विश्वास करने वाला आस्तिक और अविश्वास करने वाला नास्तिक । परन्तु आस्तिकता यदि ईश्वरवादिता का वाचक हो और नास्तिकता अनीश्वरवादिता का, तब तो प्राचीन सांख्य और वैशेषिक जैसे दर्शनों को भी नास्तिक दर्शन की कोटि में रखना होगा जो परम्परा के विरुद्ध होगा। दूसरी बात यह है कि जिन बौद्ध और जैन दर्शनों को नास्तिक दर्शनों के वर्ग में रखा जाता है वे स्वयं इसका विरोध करते हैं । चन्द्रकीत्ति ने अपनी माध्यमिकवृत्ति में स्पष्ट कहा है कि बौद्ध नास्तिक नही हैं-न वयं नास्तिकाः, उसी प्रकार जैन को भी नास्तिक शब्द से चिढ़ है। फिर भी उन्हें नास्तिक के वर्ग में रखना उचित कैसे कहा जा सकता है ? बौद्धों और जैनों का यह विरोध युक्तिसंगत भी है, क्योंकि आस्तिक और नास्तिक परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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