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________________ वर्गीकरण सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर इसी प्रकार सांख्य योग में भी थोड़ा ही भेद है । सांख्ययोग पृथक्वालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः । एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विदन्ते फलम् ॥ इति इस गीता वाक्य से सांख्य योग का सिद्धान्त एक ही हुआ । भेद केवल इतना है कि योग ईश्वर को मानता है । सांख्य ईश्वर को नहीं मानता । Jain Education International १६५ पूर्वोत्तर - मीमांसा में भी मूलतः ऐक्य है । यह ब्रह्मसूत्र को देखने से प्रतीत होता है क्योंकि जगह जगह ब्रह्मसूत्रकारव्यास ने ' इति जैमिनिः' ऐसा लिखा है । इससे प्रतीत होता है कि जैमिनिः का मत व्यास को मान्य है । भाष्यकारों में शंकराचार्य ने भी 'व्यवहारे भट्टनय:' इस सिद्धान्त को अपनाया है । कुमारिल भट्ट पूर्वमीमांसा के प्रमुख विद्वान है । यद्यपि वैष्णव भाष्यकार शङ्कराचार्य के विरोधी हैं किन्तु वे सभी भाष्यकार न्यायवैशेषिक का पदानुसरण करते हैं । अतः उनका यह दर्शन न्याय-वैशेषिक दर्शनों में गतार्थ होता है । शङ्कर- अद्वैतवाद उपक्रमोपसंहार से उपनिषदों का परम सिद्धान्त होता है । इस प्रकार आस्तिक दर्शनों का वर्गीकरण पहले ही से हुआ है । आप नया वर्गीकरण करने का जलताड़न प्रयास कर रहे हैं । और यह वर्गीकरण प्रयास पिष्टप्रेषण तथा अनर्थक है । अब चलिए आप अद्वैतवाद में शून्यवाद को ढकेलना चाहते हैं यह उचित नही है क्योंकि अद्वैतवाद जगत को मिथ्या ( अनिर्वचनीय ) कहता है । शांकरभाष्य के भामती में 'मिथ्या शब्दोऽयमनिर्वचनीचतावचनः' यह कहा है । शून्यवाद में जगत को शून्य कहा गया है । शून्य कोई तत्त्व नहीं है खपुष्प एवं बन्ध्यापुत्र को शून्य कहा जा सकता है जो अलीक है । यदि कोई शून्य तत्त्व माना जाय तो वह अनिर्वचनीय भी होगा । अतः शून्यवाद तथा अद्वैतवाद का ऐक्य नहीं हो सकता। शिवाद्वैत, शक्यद्वैत ये भी मूलतः अद्वैत सिद्धान्त नहीं हैं। क्योंकि इन दोनों सिद्धान्तों को मानने से शिव-शक्ति का द्वैत ही सिद्ध होता है विज्ञानवाद में क्षणिक विज्ञान संतान को ही आत्मा और विषय रूप मानते हैं। क्षणिक विज्ञान का अनन्त ऐसी स्थिति में ब्रह्माद्वैतवाद से विज्ञानवाद अत्यन्त दूर पड़ जाता है । विशिष्टाद्वैतवाद भी मौलिक अद्वैत नहीं है। क्योंकि उसमें जीव जगत भेद छिपा हुआ है । अतः जो पूर्वोक्त वर्गीकरण आज तक हुआ है। वह समुचित है और नवीन वर्गीकरण का प्रयास व्यर्थ है । । वह For Private & Personal Use Only परिसंवाद - ३ www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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