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________________ बौद्धविचारों की दृष्टि में व्यक्ति और समाज और उनका सम्बन्ध प्रो० कृष्णनाथ प्राचीन धर्म और दर्शन व्यक्ति और समाज में अन्योन्याश्रय सम्बन्ध मानते हैं। इनकी दृष्टि में व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों में संघर्ष नहीं। आधुनिक काल में विशेषकर उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोप में व्यक्तिवादी और समाजवादी दो प्रकार की विचार प्रणालियों का और संगठनों का विकास हुआ। कहते हैं कि १८४० के आसपास एक फ्रांसीसी लेखक ने अमेरीकी समाज को लक्ष्य कर कहा कि वहाँ तो व्यक्तिवादी ढङ्ग का सङ्गठन है। इसके पहले जो चीज लक्ष्य की जाती थी वह अहंकारममकारवादी तो थी, किन्तु व्यक्तिवादी संज्ञा उसे नहीं दी जाती थी। जो हो, व्यक्तिवादी के विरोध में उन्हीं दिनों यूरोप में समाजवादी आलोचना का उद्भव और विकास हुआ। फिर तो इनकी जड़ें, जैसी कि पश्चिम की चाल है, प्राचीन ग्रीस और रोम में भी ढूँढ़ ली गयीं। परम्परागत दृष्टि से विचार करने वालों के लिए व्यक्ति और समाज के हित में कोई भेद नहीं दीखता। किन्तु पद्धति की दृष्टि से भेद हो जाता है। व्यक्ति की दृष्टि से अगर चलें तो एक प्रकार हो जाता है, समाज की दृष्टि से तो दूसरा प्रकार । इनमें पहले कौन ? प्राथमिकता का प्रश्न आ जाता है। जैसे शील के पालन को ले लें । अगर एक व्यक्ति मृषावाद से विरत रहने का व्रत ले तो चाहे समाज में झूठ चलता रहे तो भी उसे तो झूठ से विरत रहना है। उसके लिए उसका शील तो उससे शुरू होता है। यहाँ एक प्रश्न है, अगर समाज में झूठ चलता रहे तो क्या एक व्यक्ति मृषावाद से विरत रह सकता है ? जो लोग समाज पर बल देते हैं वह यह मानते हैं कि पहले समाज बदले, व्यवस्था बदले तो ही व्यक्ति बदल सकता है, अन्यथा नहीं। अब व्यक्ति प्रथम है या समाज व्यवस्था ? इसमें से जिस पर बल दिया जाए, उस हिसाब से पद्धति में अन्तर आ जाता है। बौद्ध दृष्टि में परम्परागत रूप से व्यक्ति और समाज और उनके सम्बन्ध का विचार सीधे नहीं मिलता। व्यक्ति को अगर पुद्गल मानें और समाज को समष्टि तो बौद्ध दृष्टि में पुद्गल पञ्च-स्कन्धों की प्रज्ञप्ति है। इसी दृष्टि का विस्तार कर समाज परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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