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________________ ३५२ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं तो शोषण का उपदेष्टा अपनी स्थिति इतनी अकिञ्चन रखता है कि उस पर अधकचरे मार्क्सवादियों के आरोप सही नहीं उतर पाते हैं। उन्होंने भारतीयदर्शन के आधारभूमि कर्मसिद्धान्त एवं पुनर्जन्मवाद पर एक गहरी चोट देने का प्रयत्न किया तथा वर्तमान में समता की सम्भावनाओं के लिए नये दार्शनिक मूल्यों को सुझाने का प्रयत्न किया, जिस पर विचार अपेक्षित है। ___ लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ० नवजीवन रस्तोगी ने शैवतन्त्रों में सामाजिक समता नामक निबन्ध में विविध दृष्टि से विचार प्रस्तुत किया तथा कहा-इतनी भाग दौड़ का प्रयोजन सिर्फ इस बात को रेखांकित करना है कि तन्त्रों में इस बात के प्रभूत आधार हैं कि इनसे समतावादी दर्शन की ठोस सम्भावनायें खड़ी की जा सकती हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय के ही डॉ० अशोककुमार कालिया ने अपने विद्वत्तापूर्ण निबन्ध में वैष्णवतन्त्रों में समता के स्वर पर बोलते हुए कहा-रामानुज यहाँ उस चिकित्सक के रूप में सामने आते हैं जो एक ही रोग के दो उपचारों को मानते हुए एक उपचार (तान्त्रिक दीक्षा, प्रपत्ति शरणागति) को दूसरे उपचार (वैदिक मार्ग) की अपेक्षा सर्वजन सुलभ, सुकर तथा शीघ्र फलप्रद होने के कारण मान्यता प्रदान करते हैं। यह मार्ग निश्चय ही समता का अनुरोधी है। ___आचार्य पं० केदारनाथ त्रिपाठी (का० हि० वि० वि०) ने कहा-भारतीय दर्शनों का निष्कृष्टार्थ रूप में जहाँ समता में विषमता को देखना संसार एवं बन्धन है वहीं विषमता में समता की दृष्टि मुक्ति है । यह दृष्टि जिसे जिस मात्रा में प्राप्त होती है वह उसी मात्रा में बद्ध एवं मुक्त होता है। डॉ० रघुनाथ गिरि (अध्यक्ष, दर्शन विभाग काशी विद्यापीठ) ने आश्रम व्यवस्था की विशेषताओं की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि ब्रह्मचर्य एवं वानप्रस्थ आश्रम की व्यवस्था में निहित सिद्धान्त सबके लिए मुफ्त समानशिक्षा तथा स्वेच्छया अधिकार के त्याग को स्मरण दिलाते हैं। सारी खामियों के बावजूद यह व्यवस्था किसी को बेरोजगार होने से बचाती है। श्री राधेश्यामधर द्विवेदी (सं० सं० वि० वि०) ने कहा--भारत में समता को धर्म के मूल्यों के आधार पर अध्यात्म के साथ जोड़ना चाहिए । पर यह मात्र खयाली पुलाव न होकर जीवनदर्शन होना चाहिए। श्री रामशंकर त्रिपाठी (अध्यक्ष–बौद्धदर्शन विभाग सं० सं० वि० वि० वाराणसी) ने कहा कि बौद्धदर्शन की दृष्टि से सामाजिक समता नैरात्म्यमूलक है। परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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