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________________ २९५ सामाजिक समता और बौद्धदर्शन । कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं चाहता, यहाँ तक कि वह मोक्ष को भी अपने उद्देश्य के सामने तुच्छ ही समझता है। उसका पूरा व्यक्तित्व एक सामाजिक व्यक्तित्व होता है। समाज ही उसका आराध्य एवं पूज्य होता है। उसकी सेवा में ही वह अपने जीवन की कृतार्थता समझता है। वह प्रतिज्ञा करता है कि जब तक सभी प्राणी दुःख से मुक्त नहीं हो जाते, तब तक निर्वाण की सारी स्थिति सुलभ होने पर भी मैं उसमें प्रवेश नहीं करूँगा। इसे ही अप्रतिष्ठित निर्वाण कहते हैं और यही करुणा या बोधिसत्त्व का लक्ष्य है। इस तरह करुणा व्यक्ति और समाज के मौलिक परिवर्ततन का, उनके हितसाधन का अपूर्व भारतीय उपाय है। दुनियाँ में आज तक जितने भी सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक परिवर्तन हुए, उनके मूल में करुणा नहीं रहने से अनेक प्रकार की विकृतियों का जन्म हुआ। बुराइयाँ नष्ट नहीं हुई, अपितु दूसरे-दूसरे रूपों में प्रकट हुई हैं । करुणा एक ऐसा भारतीय उपाय है, जिससे परिवर्तन तो घटित होता है । किन्तु प्रतिक्रिया का और विकृति का जन्म नहीं होता। दुनियाँ के समाजशास्त्रियों को इसका मूल्यांकन करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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