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________________ सामाजिक समता और बौद्धदर्शन २९३ इससे व्यक्ति परिवर्तित होने लगता है तथा दूसरे व्यक्ति के प्रति और वस्तुओं के प्रति उसके सम्बन्ध और व्यवहारों में भी परिवर्तन परिलक्षित होने लगता है । अब उसके सारे आचरणों की दिशा स्वार्थमूलक न होकर समाज-परक या परमार्थमूलक हो जाती है। इस तरह बौद्धों की दृष्टि में सामाजिक समता नैरात्म्यमूलक बनती है। बौद्धों की दृष्टि में अतीत और अनागत काल की सत्ता मान्य नहीं हैं, अतः जो भी समता हो, उसे इसी लोक में और अभी अर्थात् वर्तमान में ही घटित होना चाहिए। करुणा बौद्धदर्शन अध्यात्मवादी है। नैरात्म्य या शून्यता उनकी आध्यात्मिक समता का आधार है। उनकी इस आध्यात्मिक समता का व्यावहारिक रूप अथवा यह कहें कि उसका सामाजिक समता से सम्बन्ध जोड़ने वाला तत्त्व करुणा है। जगत में अनन्त और असीम दुःख और विषमताओं का प्रवाह दृष्टिगोचर होता है । इस यथार्थ दुःख का दर्शन ही करुणा का बीज है। करुणा ही महायान बौद्धदर्शन का आदि, मध्य और अन्त है। दुःखों से मुक्ति तो प्रत्येक प्राणी चाहता है, किन्तु जब कोई व्यक्ति यह सोचे कि दुःख और भय जैसे मुझे प्रिय नहीं है, वैसे किसी को प्रिय नहीं है, तो फिर मुझमें ही ऐसी क्या विशेषता है कि मैं अपने को ही दुःख में मुक्त करना चाहता हूँ, अन्य को नहीं ? तो यहाँ से करुणा प्रारम्भ होने लगती है। जैसे शान्तिदेव ने शिक्षासमुच्चय में कहा है यदात्मनः परेषां च भयं दुःखं च न प्रियम् । तदात्मनः को विशेषो यत्तं रक्षामि नेतरम् ॥ बौद्ध कर्मफलवादी तथा पुनर्जन्मवादी हैं। अनादिकालीन जन्म-परम्परा में सभी प्राणी कभी न कभी, किसी न किसी जन्म में उसके बन्धु रहे हैं और वह भी इसी तरह अन्य प्राणियों से सम्बद्ध रहा है। इसका अर्थ है कि उसके व्यक्तित्व के निर्माण और विकास में सभी का योगदान रहा है सबका उस पर ऋण है। इसी तरह जगत् में जो दुःख है या दुःख की व्यवस्था है, उसमें भी सबका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हाथ है। इसका अर्थ हुआ करुणा एक उत्तरदायित्व की भावना है, जिसके द्वारा वह अपने को समाज का ऋणी समझता है और दुःखों के प्रवाह का तथा उसके स्रोत का उच्छेद करने का भार वह अपने ऊपर लेता है। भारतीय दर्शनों में प्रायः सभी व्यक्तिगत मोक्ष के हिमायती हैं। महायानी बौद्ध व्यक्तिगत मोक्ष की आकांक्षा को हीन कोटि की आकांक्षा समझते हैं। जैसे कोई परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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