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________________ २९० भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाए पर राजा को बदल नहीं पाते थे, यदि बदलते थे तो मात्र अपने धर्म (सम्प्रदाय) का विकास करते थे । पर आज पश्चिम का प्रजातन्त्र हम पर हावी है उसके द्वारा अभी हमने सत्ता को बदला है । पुनः उसी के द्वारा व्यवस्था को बदल सकते हैं। अन्त में एक बात की ओर विशेष ध्यान देना होगा—वह है धर्ममूलक आध्यात्मिक समता की। गांधी ने राजनीति को सदा धर्म के साथ जोड़ा, ठीक उसी प्रकार समता को सदा अध्यात्म के साथ जोड़ना चाहिए। यदि यह जुड़ाव होगा तो भारतीय दर्शन की समाज में प्रतिष्ठा बढ़ेगी और सबके प्रति सबकी अच्छी निगाह बनेगी। यदि ऐसा नहीं हुआ तो दुराव होगा और संघर्ष बढ़ेगा तथा मार्क्स का वर्ग संघर्ष आकर मानव के प्रेम, स्वतन्त्रता और आध्यात्मिक भावना का नाश करेगा। फलतः मनुष्य समतावादी न बनकर दैत्यभाव से युक्त होकर राक्षसी ताकत से दबा हुआ रौरव नरक का भोग करेगा। इस सन्दर्भ में भारतीय दर्शनों की आध्यात्मिक समता की दृष्टि के विकास की नितान्त आवश्यकता है। परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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