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________________ भारतीय धर्म-दर्शन का स्वर सामाजिक समता अथवा विषमता ? हुआ था ? श्रद्दधानः शुभां विद्यामाददीतावरादपि । अन्त्यादपि परं धर्मं स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि ॥" यहाँ तक तो जगन्मैत्रीवाद और समदर्शितावाद का पूरा-पूरा पोषण हुआ । किन्तु वही मनु यह भी व्यवस्था देते हैं कि जो शूद्र विप्रों को धर्मोपदेश करने का दम भरने लगे उसके मुख और श्रोत्र में जलता हुआ तेल भर देना चाहिएधर्मोपदेशं दर्पेण विप्राणामस्य कुर्वतः । तप्तमासेचयेत् तैलं वक्त्रे श्रोत्रे च पार्थिवः ॥ मीमांसा सूत्र और ब्रह्मसूत्र के अपशूद्राधिकरण में शूद्रों द्वारा वेद के श्रवण और अध्ययन के निषेध का प्रसङ्ग अनुमोदनपूर्वक उठाया गया है । अपने-अपने भाष्य में शङ्कर और रामानुज गौतम धर्मसूत्र के एक विधान का अनुमोदनपूर्वक स्मरण और उदाहरण करते हैं । वह विधान यह है - ' अथ हास्य वेदमुपशृण्वतस् त्रपुजतुभ्यां श्रोत्रपरिपूरणमुदाहरणे जिह्वाच्छेदो, धारणे शरीरभेदः । अर्थात् शूद्र यदि वेद सुन ले, तो उसके कान में सीसा और लाख पिघला देना चाहिए, यदि वह वेद-मन्त्र का उच्चारण कर ले तो उसकी जीभ काट लेनी चाहिए, और यदि वह वेद को धारण कर ले तो उसके शरीर के दो टुकड़े कर देने चाहिए। पता नहीं यह विधान इतिहास कभी चरितार्थ हुआ या नहीं, और यदि हुआ तो किस सीमा तक ? वैसे इसी कोटि के कतिपय अन्य विधाओं के कार्यान्वयन के उदाहरण तो मिलते ही हैं । तैत्तिरीयसंहिता शूद्र को यज्ञ का अधिकार नहीं देती - ' तस्माच् छूद्रो यज्ञेऽनवक्लृप्तः ।" अत्रिस्मृति और महाभारत के अनुसार जप, तप, होम, तीर्थयात्रा, देवाराधन आदि से शूद्र को पाप लगता है । इतना ही नहीं, उनका स्पष्ट आदेश है कि यदि शूद्र जप -होम का अनुष्ठान करे तो उसे बध कर देना चाहिए - बध्यो राज्ञा स वै शूद्रो जपहोमपरश् च यः । ततो राष्ट्रस्य हन्ताऽसौ यथा वह्नेश् च वै जलम् ॥ जपस्, तपस्, तीर्थयात्रा, प्रब्रज्या, मन्त्रसाधनम् । देवताराधनं चैव स्त्री शूद्र पतनानि षट् ॥ शम्बूक के साथ ऐसा ही तो हुआ ?" और एकलब्य के साथ ही क्या १. मनु० २.२३८ । २. मनु० ८.२७२ । ४. गौतम - धर्मसूत्र २.३.४ । Jain Education International ६. अत्रि स्मृति १९.१३६ - १३७; म. भा. वन० १५०-३६ । ७. रामायण, उत्तरकाण्ड, सगं ७६ । ३. मीमांसा - सूत्र ६.१.७; ब्रह्मसूत्र १.३.९ । ५. तैत्तिरीय-संहिता ७.१.१.६ । ૨૪૦ ८. म. भा. द्रोण० १८१-१७ । " For Private & Personal Use Only परिसंवाद - २ www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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