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________________ प्राचीन संस्कृत-साहित्य में मानव समता डॉ० रामशङ्कर त्रिपाठी मानव इतिहास के आरम्भिक काल में न कोई राज्य था, न राजा, न दण्ड था और न दण्डदाता, सारा मानव-समुदाय परस्पर सहिष्णुता, सहृदयता, सत्यता एवं मानवता के सिद्धान्तों के आधार पर स्वयं नियन्त्रित तथा संचालित होता था। सम्भवतः प्रारम्भिक सहयोग की इसी भावना को महाभारत ने धर्म की संज्ञा प्रदान की है नैव राज्यं न राजासीन च दण्डो न दाण्डिकः । धर्मेणैव प्रजाः सर्वा रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥ शान्ति० ५९।१४ । किन्तु परस्पर सहयोग का यह सिद्धान्त अधिक दिनों तक न चल सका। लोभ एवं स्वार्थ ने प्रकृति-गंगा के सुरम्य तट पर मानवता की मणिकर्णिका का शनैः शनैः शिलान्यास किया। फलस्वरूप 'मात्स्यन्याय' ने जन्म ग्रहण किया, 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' के सिद्धान्त ने धीरे-धीरे अँगड़ाई ली। फिर क्या था, प्रबल निर्बल को सताने लगे, प्रबल प्रबलतरसे भय खाने लगे, प्रबलतर प्रबलतम से घबड़ाने लगे। चतुर्दिक अव्यवस्था की वैतरणी बहने लगी। किसी का न गृह सुरक्षित था, न गृहिणी ।' सम्भवतः ऐसी ही परिस्थिति में कुछ विवेकशील व्यक्तियों ने परस्पर मिलकर समाज की सुरक्षा का भार किसी ऐसे व्यक्ति के कन्धे पर रखने का निश्चय किया जो शारीरिक तथा बौद्धिक दोनों ही दृष्टियों से समर्थ था। यही राजा का सर्वप्रथम चुनावथा । ऐतरेयब्राह्मण (१।१४) में आया है कि राजा के अभाव में देवों ने अपनी दुर्दशा देखी। अतः सबने मिलकर एकमत से राजा का चुनाव किया। इससे यह बात स्पष्ट प्रतीत होती है कि सामरिक आवश्यकताओं ने स्वामित्व या नपत्व को अंकुरित किया। कौटिल्य ने अपने जगद्विदित अर्थशास्त्र में लिखा है कि 'मात्स्यन्याय' से आक्रान्त होकर लोगों ने मनुवैवश्वत को अपना राजा बनाया। ऐसी ही बात रामायण (२०६७), शान्तिपर्व (१५।३० एवं ६७।१६) तथा कतिपय पुराणों में भी कही गई है। १. अराजकाः प्रजाःपूर्व विनेशुरिति नः श्रुतम् । परस्परं भक्षयन्तो मत्स्या इव जले कृशान् ॥ शान्ति० ६७।१७ । २. अर्थशास्त्र ११४ । परिसंघाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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